गुरू माने मिलया पूरा भेद बतायाः मूल कमल पे गणपती बोले खटदल ब्रहम बिकाना ।अष्ट कमल पर विष्णु रूप है ,द्वादश शिव का थाना ।छे मूल पर त्रिकुटी रूप है झिलमिल जोत प्रकाशा ।पाँचो उलट अमीरस बरसे जहाँ हँस करे असनाना ।सात मूल पे सूरज दरसे वहां कोटि भानू प्रकाशा । अष्ट मूल पर चंदा रूप है ,वहां अमी का वासा ।नव मूल पर तारा दरसे वहीं शक्ति का वासा ।दस मूल पर ब्रहम का वासा जहां कोटि सूरज प्रकाशा ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले उलट पलट मिल जाना ।। ः वाणी ः तीरथ जाऊँ करूँ न तपस्या ,ना कोई देवल ध्याऊंगो । घडया घाट कदे न पूजूं ,अनघड़ देव मनाऊंगो । याद करो जद आऊं सतगुरू ,हुकम करो जद जाऊंग़ो ।हरिरस प्रेम प्याला पीकर,लाल मगन हो जाऊंगो ।मकड़ी मंदिर चढि सत धारो,ऐसी निवण लगाऊगो ।दसवे देस इकीसवे बिरमांड ,वहां पूग्या पद पाऊगो । गंगा जमना नहीं नहाऊं ,ना कोई तीरथ जाऊंगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई ,घर ही गंगा नहाऊगो ।जडी खाऊं ना बूटी खाऊं ना कोई वेद बुलाऊंगो ।नाडी का वेद सतगुरू देवा,वाने नबज दिखाऊंगो ।बस्ती बसूं न वन मे जाऊं ,भूखा रेण नपाऊगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई, रिदि सिद्वी ले घर आऊंगो।इगंला ना साजूं पिगंला न साजूं,त्रिकुटी ध्यान लगाऊगो ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले, जोत मे जोत मिलाऊंगो।।
Saturday 26 September 2020
!! गोरखनाथ का प्रिय जंजीरा मंत्र !!
यंत्र पूजा विधि : –
पितृ-आकर्षण मन्त्र
कभी-कभी पितृ-पीड़ा से मनुष्य का जीवन दुःख-मय हो जाता है। निर्धारित कार्यों में बाधा, विफलता की प्राप्ति होती है। आकस्मिक दुर्घटनाएँ घटती है। पूरा कुटुम्ब दुःखी रहता है। ऐसी दशा में निम्नलिखित ‘प्रयोग’ करे। यह ‘प्रयोग’ निर्दोष है। पितृ-पीड़ा हो या न हो, सभी प्रकार की बाधाएँ नष्ट हो जाती है और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। यदि यह ज्ञात हो कि किस पितृ की पीड़ा है, तो उस पितृ का मन-ही-मन आवाहन-पूजन कर निम्न ‘प्रयोग’ करे। पितृ-पीड़ा दूर हो जाएगी।
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गुरु गोरक्षनाथ पंचमात्रा
।। ॐ शिव गोरक्ष योगी ।।
Wednesday 16 September 2020
अघोर गायत्री मंत्र
सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी मैं अघोरी सर्वरंगी।गुरु हमारे बहुरंगी।भूत प्रेत वैताल मेंरे संगी।डाकिनी शाकिनी अंग अंग में लगी।भूतनी प्रेतनी हाथ जोड़ पांव में पड़ी।चुड़ैल पिशाचिनी सेंवा में हाजिर हजूर खड़ी। अघोरी अघोरी भाई भाई।अघोरी साधो मढ़ी मसान के मांई।अघोरी की संगत करना।जिस संगत से पार उतरना।मढ़ी मसान से अघोरी आया।खुर खुर खावें।लुदर मांगे।आस पल के संग न जावें।गगन मण्डल में उनकी फेरी।काली नागिन उसकी चेली।उस नागिन पर अघोरी की छायां।अघोरी ने छायां से अघोर उपाया।अघोर से अघोरी हो कर ब्रम्ह चेताया।सेली सिंगी बटुआ लाया।बटुवें में काली नागिन।काली नागिन लाकर तलें बिछाई।तब अघोरी ने जुगत कमाई।रक्त गुलासी।शुद्ध गुलासी।केतु केतु हेरो भाई।ना किसी के भेलें जावें।ना किसी के भेलें खावें।मढ़ी मसान मेरा वासा।मैं छोड़ी कुल की आशा।अघोर अघोर महाअघोर।आदि शक्ति का भग वो भी अघोर।गौरी नन्द गणेश के शुभ लाभ वो भी अघोर।काली पुत्र काल भैरव का कपाल वो भी अघोर।अंजनी सुत हनुमान कि ललकार वो भी अघोर।ब्रम्हा जी के चार वेद छहः शास्त्र वो भी अघोर।वासुदेव श्री कृष्ण के छप्पन करोड़ यादव वो भी अघोर।देवाधिदेव महादेव के ग्यारह रुद्र वो भी अघोर।गौरां पार्वती माई की दस महाविद्या वो भी अघोर।कामदेव की रति वो भी अघोर।ब्रम्हऋषि वाल्मिकी जी की रामायण वो भी अघोर।महऋषि वेदव्यास जी की श्रीमद्भागवत गीता वो भी अघोर।गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस वो भी अघोर।माता पिता वो भी अघोर।गुरु शिष्य वो भी अघोर।मढ़ी मसान की राख वो भी अघोर।मुआ मुर्दा की ख़ाक वो भी अघोर।सदाशिव गुरू गोरक्ष नाथ जी ने अघोर गायत्री मंत्र सिद्ध गहनी नाथ जी को कान में सुनाया।अज्जर वज्जर किन्हें हाड़ चाम ,अमर किन्हीं सिद्ध गहनी नाथ जी की काया।आवें नहीं जावें नहीं।मरें नहीं जन्में नहीं।काल कभी नहीं खावें।मरें नहीं कभी घट पिण्ड ,सड़े नहीं नाद बिन्द की काया।शिव शक्ति ने अण्ड फोड़ ब्रम्हाण्ड रचाया।ले सिन्दूर लिलाट चढ़ाया।सिन्दूर सिन्दूर महासिन्दूर।महा सिन्दूर कहाँ से आया।कैलाश पर्वत से आया।कौन कौन ल्याया।गौरी नंद गणेश काली पुत्र काल भैरव अंजनी सुत हनुमान ल्याया।कौन कारण ल्याये।माता आदि शक्ति के कारण ल्याये।तेल तेल महातेल।देंखु रे सिन्दूर तेरी शक्ति का खेल।तेल में लेऊँ सिन्दूर मिलाय।बीच लिलाट बिंदी लेऊँ लगाय।भूत प्रेत बेरी दुश्मन के लगाऊँ वज्र शैल।एक सेवा से हनुमन्त ध्याऊँ।पकड़ भुजा काल भैरव की ल्याऊं।हथेली तो हनुमान बसे बिंदी बसे दुर्गा माई काल भैरव बसे कपाल।विभुति उलेटू विभुति पलेटु।विभुति का करूँ शिंणगार।आप लगायें धरती के मै लगाऊँ संसार।अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी बोलें बंम बंम ओउमकार।माया मछिन्द्र नाथ जी ने ओउमकार का ध्यान लगाया।ओउमकार में अलख निरंजन निराकार।अलख निरंजन निराकार में पारब्रम्ह।पारब्रम्ह में कामधेनु गाय।कामधेनु गाय से उत्पन्न भई माता अघोर गायत्री।अघोर गायत्री अज़रा जरें।काट्या घाव भरें।अमिया पीवें।अभय मण्डल में रहन्ती।असँख्य रूप धरन्ती।साधु संतों को तारन्ती।अभेद कवच भेदन्ती।छल कपट छेदन्ती।लख चौरासी जिया जून से टालन्ती।अपने ग्वाल बाल को पालन्ती।इंद्री का श्राप टालन्ती।वैतरणी नदी से पार उतारन्ती।अघोर गायत्री माई सत्य सागरी।ओउम तरी।सोहंम तरी।रेवन्तरी।धावन्तरि।अजरावन्