Saturday 26 September 2020

योग वाणी

 गुरू माने मिलया पूरा भेद बतायाः मूल कमल पे गणपती बोले खटदल ब्रहम बिकाना ।अष्ट कमल पर विष्णु रूप है ,द्वादश शिव का थाना ।छे मूल पर त्रिकुटी रूप है झिलमिल जोत प्रकाशा ।पाँचो उलट अमीरस बरसे जहाँ हँस करे असनाना ।सात मूल पे सूरज दरसे वहां कोटि भानू प्रकाशा । अष्ट मूल पर चंदा रूप है ,वहां अमी का वासा ।नव मूल पर तारा दरसे वहीं शक्ति का वासा ।दस मूल पर ब्रहम का वासा जहां कोटि सूरज प्रकाशा ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले उलट पलट मिल जाना ।।  ः वाणी ः तीरथ जाऊँ करूँ न तपस्या ,ना कोई देवल ध्याऊंगो । घडया घाट कदे न पूजूं ,अनघड़ देव मनाऊंगो । याद करो जद आऊं सतगुरू ,हुकम करो जद जाऊंग़ो ।हरिरस प्रेम प्याला पीकर,लाल मगन हो जाऊंगो ।मकड़ी मंदिर चढि सत धारो,ऐसी निवण लगाऊगो ।दसवे देस इकीसवे बिरमांड ,वहां पूग्या पद पाऊगो । गंगा जमना नहीं नहाऊं ,ना कोई तीरथ जाऊंगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई ,घर ही गंगा नहाऊगो ।जडी खाऊं ना बूटी खाऊं ना कोई वेद बुलाऊंगो ।नाडी का वेद सतगुरू देवा,वाने नबज दिखाऊंगो ।बस्ती बसूं न वन मे जाऊं ,भूखा रेण नपाऊगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई, रिदि सिद्वी ले घर आऊंगो।इगंला ना साजूं पिगंला न साजूं,त्रिकुटी ध्यान लगाऊगो ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले, जोत मे जोत मिलाऊंगो।।

!! गोरखनाथ का प्रिय जंजीरा मंत्र !!

मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए नाना प्रकार की सिद्धियाँ की एवं उस पर विजय प्राप्त करने के बाद स्वार्थ-परमार्थ दोनों कार्य भी किए। किसी ने भैरव को, किसी ने दुर्गा को, किसी ने हनुमान जी को इस प्रकार सभी ने अपने-अपने हिसाब से देवताओं की आराधना कर सिद्ध किया और अपने कार्य को किया !!

यहाँ पर गुरु गोरखनाथ को प्रसन्न करने के लिए मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं जो 21 दिन में सिद्ध होता है। साथ में गोरखनाथ जी का आशीर्वाद भी मिलता है इसे सिर्फ परोपकार के लिए ही कार्य में लें अपने स्वार्थ के लिए नहीं !!

मंत्र (जंजीरा)                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            !! ऊँ गुरुजी मैं सरभंगी सबका संगी, दूध-माँस का इकरंगी, अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में पड़झाँई, दर से वहाँ दर से मेरा साईं, मूल चक्र सरभंग का आसन, कुण सरभंग से न्यारा है, वाहि मेरा श्याम विराजे ब्रह्म तंत्र ते न्यारा है, औघड़ का चेला, फिरू अकेला, कभी न शीश नवाऊँगा, पत्र पूर पत्रंतर पूरूँ, ना कोई भ्राँत ‍लाऊँगा, अजर अमर का गोला गेरूँ पर्वत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डंका करो सनेवा, राखो पूर्ण वरसता मेवा, जोगी जुण से है न्यारा, जुंग से कुदरत है न्यारी, सिद्धाँ की मूँछयाँ पकड़ो, गाड़ देवो धरणी माँही बावन भैरूँ, चौसठ जोगन, उल्टा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटकें नाड़ा, न कोई माँगे हजरता भाड़ा मैं ‍भटियारी आग लगा दूँ, चोरी-चकारी बीज बारी सात रांड दासी म्हाँरी बाना, धरी कर उपकारी कर उपकार चलावूँगा, सीवो, दावो, ताप तेजरो, तोडू तीजी ताली खड चक्र जड़धूँ ताला कदई न निकसे गोरखवाला, डाकिणी, शाकिनी, भूलां, जांका, करस्यूं जूता, राजा, पकडूँ, डाकम करदूँ मुँह काला, नौ गज पाछा ढेलूँगा, कुँए पर चादर डालूँ, आसन घालूँ गहरा, मड़, मसाणा, धूणो धुकाऊँ नगर बुलाऊँ डेरा, ये सरभंग का देह, आप ही कर्ता, आप ही देह, सरभंग का जप संपूर्ण सही संत की गद्दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही !!

!! सिद्ध करने की विधि एवं प्रयोग !!

किसी भी एकांत स्थान पर धुनी जलाएँ। उसमें एक लोहे का चिमटा गाड़ दें। नित्य प्रति धुनी में एक रोटी पकाएँ और वह रोटी किसी काले कुत्ते को खिला दें। (रोटी कुत्ते को देने के ‍पहले चिमटे पर चढ़ाएँ।) प्रतिदिन आसन पर बैठकर 21 बार जंजीरा (मंत्र) का विधिपूर्वक पाठ करें। 21 दिन में सिद्ध हो जाएगा।
किसी भी प्रकार का ज्वर हो, तीन काली मिर्च को सात बार मंत्र पढ़कर रोगी को खिला दें, ज्वर समाप्त हो जाएगा।
भूत-प्रेत यक्ष, डाकिनी, शाकिनी नजर एवं टोने-टोटके किसी भी प्रकार का रोगी हो, मंत्र (जंजीरा) सात बार पढ़कर झाड़ दें। रोगी ठीक हो जाएगा।
यदि आप किसी भी कार्य से जा रहे हो, जाने से पूर्व मंत्र को पढ़कर हथेली पर फूँक मार कर उस हथेली को पूरे चेहरे पर घुमा लें फिर कार्य से जाएँ, आपका कार्य सिद्ध होगा और आपको सफलता जरूर मिलेगी।
आत्मा एवं परमात्मा का मिलन आपके कार्य सिद्ध करेंगे !!

यंत्र पूजा विधि : –

भगवान शिव के इस तांत्रिक यंत्र/Shiv Tantrik Yantra को आप ताम्रपत्र पर खुदवा या भोजपत्र पर बना सकते है | भोजपत्र पर इस यन्त्र को बनाने के लिए अष्टगंधा की स्याही का ही प्रयोग करें |

सुबह-सुबह प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर सफ़ेद कपड़े धारण करें | अब पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान भोलेनाथ की फोटो या मूर्ती की स्थापना करें | अब शिव तांत्रिक यंत्र को चौकी पर रखे | घी का दीपक व धुप आदि लगाये | अब इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान भोलेनाथ की फोटो और यंत्र पर पुष्प अर्पित करें | मंत्र इस प्रकार है :

कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारम्।
सदा वसन्तं हृदयारबिन्दे, भवं भवानि सहितं नमामि॥

अब भगवान शिव के तांत्रिक यंत्र को अक्षत(चावल), सफ़ेद आक के पुष्प और फल व मिठाई आदि अर्पित करें | एक लौटे में जल भरकर रखे | अब जल के कुछ छींटे यंत्र पर लगाये |

इसके उपरांत आप भगवान शिव का स्मरण करते हुए शिव चालीसा का पाठ करें | पाठ समाप्त होने पर – ” ॐ नमः शिवाय ” मंत्र की 3 माला का जप करें | मंत्र जप में जल्दी न करें | सहजता के साथ व लयबद्धता के साथ मंत्र जप करें | अंत में भगवान शिव की आरती करें और प्रणाम करते हुए आसन से खड़े हो जाये | अब अपने माता-पिता से आशीर्वाद ग्रहण करें |
शिव तांत्रिक यंत्र को सिद्ध करने की विधि : –
कोई भी यंत्र हो वह पूर्ण रूप से अपना प्रभाव तभी दिखाता है जब उसे विधिवत सिद्ध किया जाये | भगवान शिव के इस तांत्रिक यंत्र/(Shiv Tantrik Yantra) को भी सिद्ध करने के उपरांत ही पूजा स्थल पर स्थापित किया जाना चाहिए |

शिव तांत्रिक यंत्र को इस प्रकार से सिद्ध करें : – उपरोक्त यंत्र पूजा विधि के अनुसार ही यंत्र पूजा करें | यंत्र पूजा से पहले यंत्र को पंचामृत(दूध ,दही,घी,शहद और गंगाजल के मिश्रण) से स्नान कराये | फिर गंगाजल से स्नान कराये | इसके बाद ऊपर दी गयी विधि अनुसार ही यंत्र पूजा करें | यन्त्र पूजा के पश्चात् हाथ में  जल लेकर संकल्प ले | तत्पश्चात  – ‘ॐ नमः शिवाय ‘ मंत्र के 5000 जप करें |मंत्र जप के पश्चात् हवन करें | हवन में अधिक से अधिक आहुतियाँ ॐ नमः शिवाय मंत्र की दे | हवन सम्पूर्ण होने के उपरांत यन्त्र को हवन के ऊपर से 21 बार घुमाए और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करें | हवन की विभूति से यंत्र को तिलक करें | अब इस सिद्ध तांत्रिक यंत्र को अपने पूजा स्थल पर स्थापित करें

 

पितृ-आकर्षण मन्त्र

 कभी-कभी पितृ-पीड़ा से मनुष्य का जीवन दुःख-मय हो जाता है। निर्धारित कार्यों में बाधा, विफलता की प्राप्ति होती है। आकस्मिक दुर्घटनाएँ घटती है। पूरा कुटुम्ब दुःखी रहता है। ऐसी दशा में निम्नलिखित ‘प्रयोग’ करे। यह ‘प्रयोग’ निर्दोष है। पितृ-पीड़ा हो या न हो, सभी प्रकार की बाधाएँ नष्ट हो जाती है और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। यदि यह ज्ञात हो कि किस पितृ की पीड़ा है, तो उस पितृ का मन-ही-मन आवाहन-पूजन कर निम्न ‘प्रयोग’ करे। पितृ-पीड़ा दूर हो जाएगी।

“ॐ नमो कामद काली कामाक्षा देवी। तेरे सुमरे, बेड़ा पार। पढ़ि-पढ़ि मारूँ, गिन-गिन फूल। जाहि बुलाई, सोई आये। हाँक मार हनुमान बीर, पकड़ ला जल्दी। दुहाई तोय, सीता सती, अञ्जनी माता की, मेरा मन्त्र साँचा, पिण्ड काँचा। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का राम-दूत परम-वीर श्री हनुमान जी के मन्दिर में एकान्त में, प्रतिदिन १ हजार जप ४१ दिन तक करें। यन-नियम का पालन करें। पहले दिन पूजन करें। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जाएगा। ४२वें दिन, श्री हनुमानजी के उसी मन्दिर में २१ गुलाब के फूल लेकर जाए। हनुमानजी के सामने बैठकर उक्त मन्त्र से २१ फूलों को अभिमन्त्रित करें और मन-ही-मन संकल्प करें-“ज्ञात-अज्ञात पितृ-देवता मुझे दर्शन दें या आशीष दें।” 
इसके बाद सभी फूल, सभी दिशाओं-विदिशाओं में फेंक दें। फिर थोड़ी देर मन्दिर में रुके रहें, ध्यान से बैठे रहें। फिर गृह चले जायें। एक सप्ताह के अन्दर उचित निर्देश मिल जायेगा .

गुरु गोरक्षनाथ पंचमात्रा

 ।। ॐ शिव गोरक्ष योगी ।।

            


सतनमो आदेश । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश । 
ॐ गुरु जी । 

कहो रे बालक किस मूण्डा किस मुण्डाया किसका भेजा नगरी आया । 

सतगुरु मुण्डा लेख मुण्डाया, गुरुं का भेजा नगरी आया । चेताऊ नगरी तारू गांव ,अलख पुरुष का सिमरू नाम । 

गुरु अविनाशी खेल रचाया, अगम निगम का पंथ बनाया । ज्ञान की गोदड़ी क्षमा की टोपी , जत का आडंबर - शील लंगोट । 

आकार खिन्था - निराश झोली , युक्ति का टोप - गुरु मुख की बोली । धर्म का चोला सत की सेली , मरी जात मेखले गले मे सेली ।

 ध्यान का बटुवा - निरत का सूईदान - ब्रह्म अचवा पहिने सुजान । बहुरंगी मोरदल - निर्लेप दृष्टि निर्भिजन डोरा न कोई सृष्टि । 

जाप जपोला , शिव सा दानी । सिंगी शब्द गुरु मुख को बानी । संतोष सूत - विवेक धागा , अनेक टिल्ली तहाँ जा लागा ।

 शर्म की मुद्रा - शिव विभूता , हर वक्त मृगयानी ले पहनी गुरु पूता ।

 सूरत की सुई - सतगुरु सेवे जो ले राखे निर्भय रहे , सेली कहे शील को राख - हर्ष शोक मन मे नही भाख । 

चोरी यारी निद्रा परि हरे । काम क्रोध मल सूत्र न धरे । इतना गोरक्षनाथ जी पंचमात्रा जाप सम्पूर्ण भया ।

 श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश आदेश ।

                            ।। इति शुभम् ।।