Monday 24 February 2014

श्री रुद्रं

ॐ नमो भगवते रुद्राय नमस्ते रुद्रमंयावौतोता इश्हावे नामाह नमस्ते अस्तु धनवान बहुभ्यामुता ते नमः यता इश्हुह शिवतमा शिवम् बभूव ते धनुः शिवा शरव्य या तवा तय नो रुद्र मृदय या ते रुद्र शिवा तनु राघोरापपकशिनी तय नस्तनुवा शान्तमय गिरिशंताभिचाकशिही यामिश्हुम गिरिशंता हस्ते बिभार्श्ह्यास्तावे शिवम् गिरित्र तं कुरु मा हिसिः पुरुश्हम जगत शिवेन वचसा तव गिरिशाच्छा वदमसi यथा नह सर्वमिज्जगादयाक्स्मासुमाना असत

नवनाथ मंत्र

गोरक्षा जालंधर चर्पातास्चा अड़बंग कानिफ़मछिन्द्र राध्या चौरंगी रेवानक भरतरी संदन्या ,भूम्या ब भूर्व नाथ सिद्ध ई नाकरोनादी रुपंच ठाकर स्थापय्ते सदाभुवनत्रया में वैक श्री गोरक्ष नमोस्तुते,न ब्रह्म विष्णु रुद्रो न सुरपति सुरानैव पृथ्वी न च चापो ------------१नै वाग्नी नर्पी वायु , न च गगन तलनो दिशों नैव कालं---------------२नो वेदा नैव यध्न्या न च रवि शशिनो ,नो विधि नैव कल्पा,--------------३स्व ज्योति सत्य मेक जयति तव पद,सचिदानान्दा मूर्ते----------------४ॐ शान्ति ,अलख , ॐ शिव गोरक्ष ...........................!! ॐ शिव गोरक्ष यह मंत्र है सर्व सुखो का सार ,जपो बैठो एकांत में ,तन की सुधि बिसार..........................!! श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पूर्वस्य इन्द्राय नमः ,ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः ,ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्शिनासाय यमाय नमः ,ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः, नैरुताया नैरुतिनाथाया नमः ,ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,वायव्य वायवे नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः , उत्तरस्य कुबेराय नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,ईशान्य इश्वाराया नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,अथाभुमिदेवाताया नमःॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ दत्तगोरक्ष सिद्धाय नमः ,मध्य प्रकाश्ज्योती देवताया नमःनमस्ते देव देवेश विश्व व्यापिं न मौएश्वाराम ,दत्त गोरक्ष कवच स्तवराज वदम प्रभो -------१--------------------------------------------------------------विश्वा धरं च सारं किल विमल तरं निष्क्रिय निर्विकारंलोकाधाक्ष्यम सुवि क्षयं सुर नर मुनिभी स्वर्ग मोक्षेक हेतुम ,स्वात्मा ,रामाप्ता कामं दुरितं विरहितं ह्याभा माध्न्या विहीनंद्वंद्व तितं विमोहम विमल शशि निभं नमामि गोरक्षनाथं ........................------------------------------------------------------------गोरक्षनाथा योगिनाथा नाथ पंथी सुधारका, ध्यानासिद्धि तपोधनी ध्यान समनि अवधूत चिन्तिका ,साधकांचा गुरु होई योगी ठेवा साधका भक्त तुझा रक्ष नाथा ,कुर्यात सदा मंगलम शिव मंगलम गुरु मंगलम ,-----------------------------------------------------------------------------------------------ॐ शिव गोरक्ष अल्लख आदेश ,ॐ शिव जती गोरक्ष , सदगुरु माया मछिन्द्र नाथाय नमः ,ॐ नवनाथाया नमः । अलख निरंजन ॐ शिव गोरक्ष ॐ नमो सिद्ध नवं अनगुष्ठाभ्य नमः पर ब्रह्मा धुन धू कर शिर से ब्रह्म तनन तनन नमो नमःनवनाथ में नाथ हे आदिनाथ अवतार , जाती गुरु गोरक्षनाथ जो पूर्ण ब्रह्म करतारसंकट मोचन नाथ का जो सुमारे चित विचार ,जाती गुरु गोरक्षनाथ ,मेरा करो विस्तार ,संसार सर्व दुख क्षय कराय , सत्व गुण आत्मा गुण दाय काय ,मनो वंचित फल प्रदयकयॐ नमो सिद्ध सिद्धेश श्वाराया ,ॐ सिद्ध शिव गोरक्ष नाथाय नमः ।मृग स्थली स्थली पुण्यः भालं नेपाल मंडले यत्र गोरक्ष नाथेन मेघ माला सनी कृताश्री ॐ गो गोरक्ष नाथाय विधमाहे शुन्य पुत्राय धी माहि तन्नो गोरक्ष निरंजन प्रचोदयात , ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदरनिरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदरकामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपारसुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट

गोरक्ष गुरु स्तोत्र

गुरु गुनालय परा , परा धी नाथ सुन्दरा , गुरु देवादिका हुनी वरिष्ठ तूची एक साजिरा गुना वतार तू धरोनिया जगासी तारिसी , सुरा मुनीश्वरा अलभ्य या गतीसी तारिसी , जया गुरुत्व बोधिले तयासी कार्य सधिले , भवार्णवासी लंघिले सुविघ्न दुर्गा भंगीले , सहा रिपुन्शी जिंकिले निजात्म तत्त्व चिंतिले , परातपराशी पाहिले प्रकृष्ट दुख साहिले, गुरु उदार माउली , प्रशांत सौख्य साउली , जया नरसी पाउली , तयासी सिद्धि गावली गुरु गुरु गुरु गुरु म्हणोनी जो स्मरे नरु , तरोनी मोह सागरु सुखी घडे निरंतरू, गुरु चिदब्धि चंद्र हा , महत्पदी महेंद्र हा , गुरु प्रताप रुद्र हा , गुरु कृपा समुद्र हा , गुरु स्वरुप दे स्वता, गुरुची ब्रह्म सर्वथा , गुरु विना महा व्यथा नसे जनी निवारिता शिवा हुनी गुरु असे अधिक मला दिसे , नरासी मोक्ष द्यावया गुरु स्वरुप घेतसे शिव स्वरुप अपुले न मोक्ष देखिले , गुरुत्व सर्व घेतले म्हणोनी कृत्य साधीले ,

गोरक्ष स्वरोपम

ॐ शिव स्वरोपम गोरक्षनाथं निरंजन रिद्धि सिद्धि वर दायकं महा मत्सेयान्द्र नन्दनं नाती पुत्र अदिनाथं जटिल भिध सेल सिंगी मस्तक चंद्र सुशोभितं II झोली झंडी मिन मेखला कटी वस्त्र मृग छाला धारानाम योगी युक्तः समाधिना वट वृक्ष छाया पद्मासनम मा देश सतु मम त्रि योगेश्वारो , सर्वदा मम हृदय निवासनम II

गोरक्ष स्तुति

गोरक्ष बालम , गुरु शिष्य पालम , शेष हिमालम , शशि खंड भालं कालस्य कालम जित जन्म जालम , बन्दे जटालम , जगदाब्जनालं

गोरक्ष मृत्युन्जयम

चर्द्रारकादृहिना च्युता म्बुजल सल्लो केश कंसारिधि कालीभैरव सिन्धु रास्य हनुमत्क्रौडे परिवारितम I वंदे तं नवनाथ सिद्ध महितं मघा हिमालासन माला पुस्तक शूल डी न्डइममधर गोरक्ष मृत्युन्जयम II

गोरक्ष संकट मोचन मंत्र

अलख निरंजन ॐ शिव गोरक्ष ॐ नमो सिद्ध नवं अनगुष्ठाभ्य नमः पर ब्रह्मा धुन धू कर शिर से ब्रह्म तनन तनन नमो नमः नवनाथ में नाथ हे आदिनाथ अवतार , जाती गुरु गोरक्षनाथ जो पूर्ण ब्रह्म करतार संकट मोचन नाथ का जो सुमारे चित विचार ,जाती गुरु गोरक्षनाथ ,मेरा करो विस्तार , संसार सर्व दुख क्षय कराय , सत्व गुण आत्मा गुण दाय काय ,मनो वंचित फल प्रदयकय ॐ नमो सिद्ध सिद्धेश श्वाराया ,ॐ सिद्ध शिव गोरक्ष नाथाय नमः । मृग स्थली स्थली पुण्यः भालं नेपाल मंडले यत्र गोरक्ष नाथेन मेघ माला सनी कृता श्री ॐ गो गोरक्ष नाथाय विधमाहे शुन्य पुत्राय धी माहि तन्नो गोरक्ष निरंजन प्रचोदयात

गोरक्ष चालीसा

जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी । जय जय जय गोरक्ष गुणखानी, इच्छा रुप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हरो नामा, सदा करो भक्तन हित कामा। नाम तुम्हारो जो कोई गावे, जन्म-जन्म के दुःख नसावे ॥ जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे, भूत-पिसाच निकट नही आवे। ज्ञान तुम्हारा योग से पावे, रुप तुम्हारा लखा न जावे॥ निराकर तुम हो निर्वाणी, महिमा तुम्हारी वेद बखानी । घट-घट के तुम अन्तर्यामी, सिद्ध चौरासी करे प्रणामी॥ भरम-अंग, गले-नाद बिराजे, जटा शीश अति सुन्दर साजे। तुम बिन देव और नहिं दूजा, देव मुनिजन करते पूजा ॥ चिदानन्द भक्तन-हितकारी, मंगल करो अमंगलहारी । पूर्णब्रह्म सकल घटवासी, गोरक्षनाथ सकल प्रकाशी ॥ गोरक्ष-गोरक्ष जो कोई गावै, ब्रह्मस्वरुप का दर्शन पावै। शंकर रुप धर डमरु बाजै, कानन कुण्डल सुन्दर साजै॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा, असुर मार भक्तन रखवारा। अति विशाल है रुप तुम्हारा, सुर-नुर मुनि पावै नहिं पारा॥ दीनबन्धु दीनन हितकारी, हरो पाप हम शरण तुम्हारी । योग युक्त तुम हो प्रकाशा, सदा करो संतन तन बासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा, सिद्धि बढ़ै अरु योग प्रचारा। जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, अपने जन की हरो चौरासी॥ अचल अगम है गोरक्ष योगी, सिद्धि देवो हरो रस भोगी। कोटी राह यम की तुम आई, तुम बिन मेरा कौन सहाई॥ कृपा सिंधु तुम हो सुखसागर, पूर्ण मनोरथ करो कृपा कर। योगी-सिद्ध विचरें जग माहीं, आवागमन तुम्हारा नाहीं॥ अजर-अमर तुम हो अविनाशी, काटो जन की लख-चौरासी । तप कठोर है रोज तुम्हारा को जन जाने पार अपारा॥ योगी लखै तुम्हारी माया, परम ब्रह्म से ध्यान लगाया। ध्यान तुम्हार जो कोई लावे, अष्ट सिद्धि नव निधि घर पावे॥ शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा, पापी अधम दुष्ट को तारा। अगम अगोचर निर्भय न नाथा, योगी तपस्वी नवावै माथा ॥ शंकर रुप अवतार तुम्हारा, गोपीचन्द-भरतरी तारा। सुन लीज्यो गुरु अर्ज हमारी, कृपा-सिंधु योगी ब्रह्मचारी॥ पूर्ण आश दास की कीजे, सेवक जान ज्ञान को दीजे। पतित पावन अधम उधारा, तिन के हित अवतार तुम्हारा॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा, अगम पंथ जिन योग प्रचारा। जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, सेवा करै सिद्ध चौरासी ॥ सदा करो भक्तन कल्याण, निज स्वरुप पावै निर्वाण। जौ नित पढ़े गोरक्ष चालीसा, होय सिद्ध योगी जगदीशा॥ बारह पाठ पढ़ै नित जोही, मनोकामना पूरण होही। धूप-दीप से रोट चढ़ावै, हाथ जोड़कर ध्यान लगावै॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पारब्रह्म अवतार। कानन कुण्डल-सिर जटा, अंग विभूति अपार॥ सिद्ध पुरुष योगेश्वर, दो मुझको उपदेश। हर समय सेवा करुँ, सुबह-शाम आदेश॥ सुने-सुनावे प्रेमवश, पूजे अपने हाथ। मन इच्छा सब कामना, पूरे गोरक्षनाथ॥ ऊँ शान्ति ! प्रेम!! आनन्द !!!

गोरक्ष दत्त मंत्र

ॐ नमः श्री गुरवे देवाय परम पुरुषाय सर्व देवता वाशिकराय सर्व रिश्ता विनाशाय सर्व मंत्र छेदनायत्रैलोकयां वशमानय ॐ गुं रूं ॐ ॐ ॐ स्वाहा इति मंत्र ई ॐ ऐं कलां क्लीं कलूँ ह्राँ ह्रीं ह्रुं सौं दत्तात्रेय नमः मंदर मुले मनिपिठा संस्थ सुवर्ण दानैक निबद्ध दिक्षमधायेत्परितम नवनाथ सिद्धे दारिद्र्य दावानल कालमेघम

गोरक्षा आदेश

अगम अगोचर नाथ , तुम पर ब्रह्म अवतार कानोमे कुंडल सिर जटा अंग विभूति अपार , सिद्ध पुरूष योगेश्वर दो मुझको उपदेश , हर समय सेवा करू सुबह शाम आदेश

गोरक्ष मृत्युंजयं

चन्द्रर्काद्रूहिनाचुत्याम्बुजलसल्लोकेशकंसरिभिः काली भैरव सिन्धु रास्य हनुमतक्रो डै: परिवारितम ! वंदे तं नवनाथ सिद्ध महितं माघ हिमालासन माला पुस्तक शूल डिन्डेमधरं गोरक्ष मृत्युंजयं !!

गोरक्ष -‘श्रीगिरिजा दशक’: एक सिद्ध प्रयोग

बैल पर बैठे हुए शिव पार्वती का ध्यान कर माँ पार्वती से दया की भीख माँगनी चाहिए। जैसे सन्तान पेट दिखाकर माता से माँगती है, वैसे ही माँगना चाहिए। कल्याण की इच्छा होगी तो माँ अवश्य सर्वतोमुखी कल्याण करेगीं। मन्दार कल्प हरि चन्दन पारिजात मध्ये सुधाब्धि1 मणि मण्डप वेदि संस्थे। अर्धेन्दु-मौलि-सुललाट षडर्ध नेत्रे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।1 आली-कदम्ब-परिशोभित-पार्श्व-भागे, शक्रादयः सुरगणाः प्रणमन्ति तुभ्यम्।2 देवि ! त्वदिय चरणे शरणं प्रपद्ये, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।2 केयूर-हार-मणि-कंकण-कर्ण-पूरे, कांची-कलापमणि-कान्त-लसद्-दुकूले। दुग्धान्न-पूर्ण3-वर-कांचन-दर्वि-हस्ते, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।3 सद्-भक्त-कल्प-लतिके भुवनैक-वन्द्ये, भूतेश-हृत्-कमल-लग्न-कुचाग्र-भृंगे ! कारूण्य-पूर्ण-नयने किमुपेक्ष्यसे मां, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।4 शब्दात्मिके शशि-कलाऽऽभरणाब्धि-देहे, शम्भोः उरूस्थल-निकेतन-नित्यवासे। दारिद्र्यदुःखभय हारिणि ! का त्वदन्या, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।5 लीला वचांसि तव देवि! ऋगादि-वेदाः, सृष्टियादि कर्मरचना भवदीय चेष्टाः। त्वत्तेजसा जगत् इदं प्रतिभाति4 नित्यं, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।6 वृन्दार वृन्द मुनि5 नारद कौशिकात्रि व्यासाम्बरीष कलशोद्भव कश्यपादयः6। भक्त्या स्तुवन्ति निगमागम सूक्त मन्त्रैः, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।7 अम्ब ! त्वदीय चरणाम्बुज सेवनेन, ब्रह्मादयोऽपि विपुलाः श्रियमाश्रयन्ते। तस्मादहं तव नतोऽस्मि पदारविन्दे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।8 सन्ध्यालये7 सकल भू सुर सेव्यमाने, स्वाहा स्वधाऽसि पितृ देव गणार्त्ति हन्त्रि। जाया सुतो परिजनोऽतिथयोऽन्य कामा, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे ! क्षुधिताय मह्यम्।।9 एकात्म मूल निलयस्य महेश्वरस्य, प्राणेश्वरि ! प्रणत भक्त जनाय शीघ्रम्। कामाक्षि! रक्षित जगत त्रितये अन्न पूर्णे, भिक्षां प्रदेहि गिरिजे! क्षुधिताय मह्यम्।।10 भक्त्या पठन्ति गिरिजा दशकं प्रभाते, कामार्थिनो बहु धनान्न समृद्धि कामा। प्रीत्या महेश वनिता हिमशैलकन्या, तेभ्यो ददाति सततं मनसेप्सितानि।।11 मन्दार कल्पवृक्ष, श्वेत चन्दन एवं पारिजात वृक्षों के मध्य में अमृत सिन्धु के बीच मणि मण्डप की वेदी पर बैठी हुई, सुन्दर ललाट पर अर्ध चन्द्रमा से सुशोभिता एवं तीन नेत्रोंवाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। आपके दोनों ओर सखियाँ शोभायमान हैं, इन्द्रादि देवगण आपको नमस्कार करते हैं, हे देवि ! मैं आपके चरणों की शरण लेता हूँ। मुझ भूखे को भोजन दीजिए। भुजबन्ध, मणियों का हार, कंकन, कर्णाभूषण, करधनी और मणियों के समान सुन्दर वस्त्र पहने तथा हाथों में खीर से भरी हुई श्रेष्ठ सोने की थाली लिए हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। कल्पलता के समान सच्चे भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली, अखिल विश्व पूजिता, भगवान शंकर के हृदय कमल में अपने कुचाग्र रूपी भौरों के द्वारा प्रविष्टा और दया पूर्ण नेत्रोंवाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। शब्द ब्रह्म स्वरूपे, अर्द्ध चन्द्र के आभूषण से विभूषित शरीर वाली और शिव के हृदय में सदा निवास करने वाली, आपके अतिरिक्त दरिद्रता के दुःख और भय को दूर करने वाला अन्य कोई नहीं है। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। हे देवि ! ऋक् आदि वेदों की वाणी आपके ही लीला वचन है। सृष्टि आदि क्रियाएँ आपकी ही चेष्टा हैं। आपके तेज से ही यह विश्व सदा दिखाई देता है। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। देव समूह, मुनि नारद, कौशिक, अत्रि, व्यास, अम्बरिष, अगस्त्य, कश्यप् आदि भक्ति पूर्वक वेद और तन्त्र के सूक्त मन्त्रों से आपकी स्तुति करते हैं। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। हे माँ ! तुम्हारे चरणों की सेवा से ब्रह्मा आदि भी अपार ऐश्वर्य पा जाते हैं। अतः मैं आपके चरण कमलों में नत मस्तक हूँ। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। सन्ध्या समय समस्त ब्राह्मणों द्वारा वन्दिता, पितरों व देवों के दुःख की नाशिका ‘स्वाहा-स्वधा’ आप ही हैं। मैं पत्नी, पुत्र, सेवक, अतिथियों एवं अन्य कामनाओंवाला हूँ। हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। हे एकात्मा मूल महेश्वर की प्राणेश्वरि ! प्रणत भक्तों पर शीघ्र कृपा करने वाली हे कामाक्षि ! हे अन्नपूर्णे ! तीनों लोकों की रक्षा करने वाली हे गिरिजे ! मुझ भूखे को भोजन दीजिए। बहु धन अन्न और ऐश्वर्य चाहने वाले जो लोग प्रातः काल इस ‘गिरिजा दशक’ को पढ़ते हैं, उन्हें महेश प्रिया, हिमालय पुत्री सदैव प्रेम पूर्वक मनचाही वस्तूएँ प्रदान करती हैं।

गोरक्ष नाथ शिष्य भ॰ गहिनीनाथ परम्परा के शाबर मन्त्र

१॰ “ॐ निरञ्जन जट-स्वाही तरङ्ग ह्राम् ह्रीम् स्वाहा” २॰ “ॐ रा रा ऋतं रौभ्यं स्तौभ्यं रिष्टं तथा भगम्। धियं च वर्धमानाय सूविर्याय नमो नमः।।” विधि- नित्य प्रातःकाल स्नान के बाद उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। ऐसा ८ दिन करने से मन्त्र सिद्ध होते हैं। बाद में नित्य २७ बार जप करें।

गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

नित्याय नाथाय निराजनाया , निवांत निष्कंप - शिखोप्माया ज्योति स्वरूपाय नमो निभाया, गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय मत्सेय्न्द्र शिष्याय महेश्वराय ,योग प्रचारय वपुर्धाराय अयोनिजयामर विग्रह हाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय शुद्धाय ,बुद्धाय , विमुक्ताकाया ,शान्ताय दान्ताय निरामयाय सिद्धेश्वरयारिवल संश्रायाय ,गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय कर्पुर गौरया , जताधरय , कर्नान्त विश्रांत विलोचनाय त्रिशुलिने भूति विभुशिताया गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय अनाथ नाथाय जग्द्विताया, कृपा कटो क्षद घृत कन्ताकाया अपामर्ण योग सुधा प्रदाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

श्री गोरक्ष कवच

श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रेय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , पूर्वस्य इन्द्राय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्षिन्स्याह यमय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , नैरुत्य नैरुतिनाथाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,वायव्य वायवे नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उत्तरस्य कुबेराय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,ईशान्य ईश्वराय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,अथ भूमि देवताये नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,मध्य प्रकाश ज्योति देवताये नमः !! नमस्ते देव देवेश विश्व व्यपिं मौएश्वरम दत्त गोरक्ष कवचं स्तवराज वदमप्रभो!!१!!ईश्वर उवाच , शृणु शैल्भुते सत्यं मर्ज मायादितं येन विसान मार्गेन जीवन मुक्तो भावेभर सार्वज त्वं कार्यसिद्धि लाभते परम भुक्तं ,वाकसिद्धि, योग सिद्धि लाभते चितीसार्थाकम न दुष्ट भयः प्रदाव्य न दातव्य कुलेश्वरी , वि प्रपंच काया शिष्याय

मन्त्रपुश्पांजलि

सं सर्वात्मकं श्री सद्गुरुवे नमः, मन्त्रपुश्पांजलि समर्पयामि ओमकाराची वलये सोऽहं च नाद , माता कुन्दलिनिला घाली साद, तीव्र साधनेचे तरल पडसाद, मार्ग दाखविती माया मछिन्द्रनाथ सांडोनी संशय धरी निर्धार , श्री गुरु मूर्ति कानीफा देईल आपार , सहज गुरु कृपा सागर , तुज नुपेक्षी सर्वदा, गुरु हा संत कुलिचा राजा , गुरु हा प्राण विसावा माज़ा .. अगर हम नवनाथ के नाम पर , तो नवनाथ हमारे काम पर ....................... अगर हम अपने काम पर , तो नवनाथ अपने निजधाम पर ................................

मचिंदर नाथ-तोबी कच्चा बे कच्चा .........

तोबी कच्चा बी कच्चा, नहीं गुरु का बच्चा दुनिया तजकर खाक लगायी,जाकर बैठा बन्मो, खेचरी मुद्रा बज्रासन पर, ध्यान धरत है मनमो..........१ गुप्ता होवे परगट होवे, जावे मथुरा कशी ,प्राण किकले, सिद्ध भय है, सत्य लोग का वाशी...................................२ तीरथ करकर उमर खोई,जोग जुगात्मो साडी, धन ,कमिनिको नज़र न लावे, जोग कमाया भरी...................३ कुण्डलिनी को खूब चढावे ब्रह्मोरंध्रामो जावे, चलता है पानी के ऊपर ,मुख बोले सो होवे..........................४ शत्रोमे कछु रही न बाकि,पुरा ज्ञान कमाया, वेड विधि का मार्ग चलकर,तन का लाकर किया...........................५ कहे मछिंदर सुन रे गोरख,तीनो ऊपर जन, किरपा भाई, जब सद्गुरु जी की, आप आप को चिह्न..................................... सोही सच्चा बे सच्चा, ओही गुरु का बच्चा.............................

गोरक्षनाथ स्तवनं

आत्मा खलु विश्व मुलं,ॐ क्रुन्वान्तो विश्वमार्यम गोरक्षा बालम,गुरु शिष्य पालम,शेष हिमालम,शशि खंड भालं,,,१ कलाय्स्य कलम,जित जन्म जालं,वंदे जटा लम ,जग्दाब्जा नालं........ गोरक्षनाथ भवरुपा भवभ्दिपोत,भक्तार्तिनाशन विभो करुनैक्मुरते, त्वात्पद पद्मा मकरंद मधु व्रतोहम ,तापं मदीय मनसो हर देव सेः... गोरक्षनाथ मई चेत करुनात वेद्रूक, दिन स्वदिय चरणौ शरणम प्रपद्ये. नश्येंदा वश्य मैथ मन संवेदना में, सिद्धि ब्रजेंनी खिल ब्रह्मा विधिर्ही लोके... गोरक्षनाथ रजसा चरण स्तिथेन पूतन शिरो भवति भक्त जनस्य नूनं ... तवा दर्शन हरति तस्य समस्त चिंता, त्वत सेवनं हरति पापा पिशाच पुज्जम हे नाथ ममापि विलोकय दीनबन्धो संताप तप्त हृदय कृपण क्षनेस्मिन पदनाते शिरसी में वरदात्मा हस्त काम निधेहि गुरूदेओ,भवानुकुलाह दोशाकरोस्मी भाग्वान्न्नुकाम्पनिया निर्दोषता न सुलभा जग्तितालेस्मिन दोशाकरेपी विमल दुति संयुतेपी की लांचन मनुज दृष्टी patha न यती

नमो गोरक्षा

या गोरक्ष सर्वभूतेषु ओमकार रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु श्री श्री श्री रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु गुरु रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु ब्रह्म रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु हरी रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु शिव रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु बटुक रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु महाकाल रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु महामृत्युंजय रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु अदि रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः! या गोरक्षा सर्वभूतेषु अनंत रूपें संस्थिता नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो गोरक्ष नमो नमः!

गुरु मच्छिन्द्रनाथ चालीसा...

गणपति गिरिजा पुत्र को सुमरूं बारम्बार हाथ जोड़ विनती करूं शारदा नाम आधार सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश माता पिता कुलगुरु देवता सत्संग को आदेश आकाश चन्द्र सूरज पावन पानी को आदेश नव नाथ चौरासी सिद्ध अनंत कोटि सिद्दों को आदेश सकल लोक के सर्व संतों को सत् सत् आदेश सतगुरु मच्छिन्द्र-नाथ को हर्दय पुष्प अर्पित कर आदेश || ॐ नमः शिवाये || चौपाई जय-जय गुरु मच्छिन्द्रनाथ अविनाशी कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी जय-जय गुरु मच्छिन्द्रनाथ गुण ज्ञानी इच्छा रूप योगी वरदानी अलख निरंजन तुम्हारो नामा सदा करो भक्तन हित कामा नाम तुम्हारा जो कोई गावे जन्म-जन्म के दुःख मिट जावे जो कोई गुरु मच्छिन्द्र नाम सुनावे भूत पिशाच निकट नहीं आवे ज्ञान तुम्हारा योग से पावे रूप तुम्हारा वर्णत न जावे निराकार तुम हो निर्वाणी महिमा तुम्हारी वेद् ना जानी घट-घट के तुम अन्तर्यामी सिद्ध चौरासी करे प्रणामी भस्म अंग गल नाद विराजे जटा सीस अति सुन्दर साजे तुम बिन देव और नहीं दूजा देव मुनि जन करते पूजा चिदानंद संतन हितकारी मंगल करण अमंगल हारी पूर्ण ब्रह्मा सकल घटवासी गुरु मच्छिन्द्र सकल प्रकाशी गुरु मच्छिन्द्र-गुरु मच्छिन्द्र जो कोई ध्यावे ब्रह्मा रूप के दर्शन पावे शंकर रूप धर डमरू बाजे कानन कुण्डल सुंदर साजे नित्यानंद है नाम तुम्हारा असुर मार भक्तन रखवारा अति विशाल है रूप तुम्हारा सुर नर मुनि जन पावे न पारा दीन बन्धु दीन हितकारी हरो पाप हम शरण तुम्हारी योग मुक्ति में हो प्रकाशा सदा करो सन्तन तन वासा प्रातः काल ले नाम तुम्हारा सिद्धी बड़े अरु योग प्रचारा हठ-हठ-हठ गुरु मच्छिन्द्र हठीले मार-मार बैरी के कीले चल-चल-चल गुरु मच्छिन्द्र विकराला दुश्मन मार करो बेहाला जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र अविनाशी अपने जन की हरो चौरासी अचल अगम है गुरु मच्छिन्द्र योगी सिद्धी देवो हरो रसभोगी काटो मार्ग यम् को तुम आई तुम बिन मेरा कौन साहाई अजर अमर है तुम्हारी देहा सनका दिक् सब जो रही नेहा कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा हे प्रसिद्ध जगत उजिआरा योगी लिखे तुम्हारी माया पार ब्रह्मा से ध्यान लगाया ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे अष्ट सिद्धी नव निधि धर पावे शिव मच्छिन्द्र है नाम तुम्हारा पापी ईष्ट अधम को तारा अगम अगोचर निर्भय नाथा सदा रहो सन्तन के साथा शंकर रूप अवतार तुम्हारा गौरव गोपीचंद्र भर्तहरी को तारा सुन लीजो प्रभु अरज हमारी कृपा सिन्धु योगी चमत्कारी पूर्ण आस दास की कीजे सेवक जान ज्ञान को दीजे पतित पावन अधम अधारा तिनके हेतु तुम लेत अवतारा अलख निरंजन नाम तुम्हारा अगम पथ जिन योग प्रचारा जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र भगवाना सदा करो भक्तन कल्याना जय-जय-जय गुरु मच्छिन्द्र अविनाशी सेवा करे सिद्धी चौरासी जो ये पढ़हि गुरु मच्छिन्द्र चालीसा होए सिद्ध साक्षी जगदीशा हाथ जोड़कर ध्यान लगावे और श्रद्धा से भेंट चडावे बारहा पाठ पड़े नित जोई मनोकामना पूर्ण होई दोहा सुने सुनावे प्रेम वश पूजे अपने हाथ, मन इच्छा सब कामना पुरे गुरु मच्छिन्द्रनाथ अगम अगोचर नाथ तुम पारब्रह्मा अवतार, कानन कुण्डल सिर जटा अंग विभूति अपार सिद्ध पुरुष योगेश्वरी दो मुझको उपदेश, हर समय सेवा करूँ सुबह शाम आदेश

श्री नवग्रह शाबर मंत्र

ॐ गुरु जी कहे, चेला सुने, सुन के मन में गुने, नव ग्रहों का मंत्र, जपते पाप काटेंते, जीव मोक्ष पावंते, रिद्धि सिद्धि भंडार भरन्ते, ॐ आं चं मं बुं गुं शुं शं रां कें चैतन्य नव्ग्रहेभ्यो नमः, इतना नव ग्रह शाबर मंत्र सम्पूरण हुआ, मेरी भगत गुरु की शकत, नव ग्रहों को गुरु जी का आदेश आदेश आदेश ! is मंत्र का १०० माला जप कर सिद्धि प्राप्त की जाती है. अगर नवरात्रों में दशमी तक १० माला रोज़ जप जाये तो भी सिद्धि होती है. दीपक घी का, आसन रंग बिरंगा कम्बल का, किसी भी समय, दिशा प्रात काल पूर्व, मध्यं में उत्तर, सायं काल में पश्चिम की होनी चाहिए. हवन किया जाये तो ठीक नहीं तो जप भी पर्याप्त है. रोज़ १०८ बार जपते रहने से किसी भी ग्रह की बाधा नहीं सताती है

शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

तुम सत चित आनंद सदाशिव आगम -निगम परे योग प्रचारण कारण युग युग गोरख रूप धरे............१ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे अकाल-सकल-,कुल-अकुल,परापर,अलख निरंजन ए भावः-भव-विभव-पराभव-कारन ,योगी ध्यान धरे..............२शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे अष्ट सिद्धि नव निधि कर जोर लोटत चरण तले भुक्ति मुक्ति सुख सम्पति यती पति सब तब एव करे....................३ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे कुंडल मंडित गंडा स्थल छवि कुंचित केश धरे सदय नयन स्मरानन युवतन अंग अंग ज्योति जारे.............४ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे अमर काया अवधूत अयोनिज सुर नर नमन करे तब कृपया पराया परिवेष्टित अधमहू पर तारे.............५ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे कृष्ण रुक्मिणी परिणय प्रकरण देवन विघ्न करे सुनी रुषी मुनि बिनती तुम प्रकट कंगन बन्ध करे......६ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे सदगुरु विषम विषय विष मूर्छित तिरिया जल परे जग मछन्दर गोरख आया गा उधर करे.........७ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे प्रिय वियोग भरतरी विहल विकल मसान फिरे महा मोहतम दयानिधि सिद्धि समृद्ध करे...........८ शिव गोरक्ष हरे ! जय शिव गोरक्ष हरे

शिव गोरक्ष नाथ स्तोत्रराज

नमो s हं कलये हंसो हंसो s हं कलयेन्वहम ! नमो s हं कलये हंसो हंसो s हं कलयेन्वहम !! अनन्यमानसो हंसो मानसं पद्मश्रीतहा अनन्यमानसो हंसो मानसं पद्मश्रीतहा र क्ष मा द क्ष गो र क्ष ! क्ष र गो क्ष द मा क्ष र ज य का म म हा रा ज , ज रा हा म म का य जे घ न सा र द ना था य य था ना द र सा ना घ ! ते स्तु मो न र धा मा हे ,हे मा धा र ! न मो s स्तु ते !! वि भू सं म त ,ना दो वा वा दो ना त म सं भू वि ! ते स्तु मो न य वा दे शं,शं देवाय न मो s स्तु ते !! न व पा र द सा या मा , मा या सा द र पा व न ! ते स्तु मो न व मी ना र्या ना मी व न मो s स्तु ते !! व न जा नि व शा वे शा , शा वे श व नि जा न व ! का यि ना नु तं शं खे न , न खे शं त नु ना यि का !! किं न ही न ज र दे व , व दे र ज न ही न कि म ! दा स सा र s म से वा , वा से मा स र सा स दा !! स व ने ज य दे वे शा , शा वे दे य ज ने व स ! ता र या ज र वै दे वे , वे दे वै र ज या र ता !! भा शु भा स ज रा भा षा , सा भा रा ज स भा शु भा ! सा र रा ज त या भा सा , सा भा या त ज रा र सा !! श्री मानार्य कृतः समोपुमयतः श्री स्तोत्र राजोघुनाह ! नाथना गुद्मावाहन विजयातेह निर्णित सारो रसः !! पक्षे दक्ष विचारितेपी जनायान्नानंद मन्यर्थदो ! बालाना शरनार्थिना शरण दो वर्वर्ति सर्वोपरि !! शिवम् स्वस्ति श्री श्रेयः श्रेनयः श्रीमतां समुल्लसन्तुत्रम इति श्री गोरक्षनाथ स्तोत्रराज सम्पुर्ण !!

श्री गोरक्ष कवच

श्री गणेशाय नमः ,श्री दत्तात्रेय नमः ,श्री दत्ता गोराक्षनाथाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , पूर्वस्य इन्द्राय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , आग्नेय अत्रे नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , दक्षिन्स्याह यमय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः , नैरुत्य नैरुतिनाथाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः ,पश्चिमे वरुणाय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,वायव्य वायवे नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उत्तरस्य कुबेराय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,ईशान्य ईश्वराय नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,उर्ध्वा अर्थ श्वेद्पाया नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,अथ भूमि देवताये नमः ॐ ॐ दं वं तं ॐ ॐ ॐ दत्त गोरक्ष सिद्धाय नमः,मध्य प्रकाश ज्योति देवताये नमः !! नमस्ते देव देवेश विश्व व्यपिं मौएश्वरम दत्त गोरक्ष कवचं स्तवराज वदमप्रभो!!१!!ईश्वर उवाच , शृणु शैल्भुते सत्यं मर्ज मायादितं येन विसान मार्गेन जीवन मुक्तो भावेभर सार्वज त्वं कार्यसिद्धि लाभते परम भुक्तं ,वाकसिद्धि, योग सिद्धि लाभते चितीसार्थाकम न दुष्ट भयः प्रदाव्य न दातव्य कुलेश्वरी , वि प्रपंच काया शिष्याय

गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय

नित्याय नाथाय निराजनाया , निवांत निष्कंप - शिखोप्माया ज्योति स्वरूपाय नमो निभाया, गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय मत्सेय्न्द्र शिष्याय महेश्वराय ,योग प्रचारय वपुर्धाराय अयोनिजयामर विग्रह हाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय शुद्धाय ,बुद्धाय , विमुक्ताकाया ,शान्ताय दान्ताय निरामयाय सिद्धेश्वरयारिवल संश्रायाय ,गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय कर्पुर गौरया , जताधरय , कर्नान्त विश्रांत विलोचनाय त्रिशुलिने भूति विभुशिताया गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय अनाथ नाथाय जग्द्विताया, कृपा कटो क्षद घृत कन्ताकाया अपामर्ण योग सुधा प्रदाय , गोरक्ष नाथाय नमः शिवाय