Saturday 16 September 2017

शिव का रहस्य

बरगद के पेड़ के नीचे दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठे हुए भगवान शिव को दक्षिणमूर्ति कहा जाता है। यह रूप गुरुओं के गुरु के रूप में शिव को दर्शाता है। दक्षिण भारत के कई मंदिरों में बरगद के पेड़ के नीचे दक्षिण दिशा की ओर मुख किये हुए भगवान शिव की मूर्तियों का पाया जाना आम बात है। शिव का यह रूप दक्षिणमूर्ति कहलाता है। यह रूप शिव को गुरुओं के गुरु के रूप में दर्शाता है। दक्षिणमूर्ति कैलाश पर्वत के उपर और ध्रुव तारा के नीचे बैठते हैं। यह उत्तर दिशा में है और अब तक इस स्थान को इस गोल पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। वह बरगद के पेड़ की छाया में बैठते हैं। बरगद का पेड़ भारत के साधु परंपराओं के साथ जुड़ा हुआ है और ये तपस्वी भौतिकवादी संसार के गृहस्थ लोगों को ज्ञान प्रदान करते हैं। दक्षिण केंद्रदक्षिण में दक्षिणकली प्रसिद्ध है जो देवी का सबसे भयंकर रूप मानी जाती है। यहां दक्षिण दिशा मृत्यु और परिवर्तन को दर्शाती है। यहां वैतर्नी बहती है। यह नदी जीवित लोगों की भूमि को मृतकों की भूमि से अलग करती है। हिंदू गांवों में दक्षिण दिशा में शमशान भूमि का होना आम बात है। यहां मृतकों के शरीर को भी दक्षिण दिशा की ओर रखा जाता है। शिव के कई रूप हैं लेकिन इस रूप में शिव के गले के चारो ओर एक सर्प लिपटा हुआ है और जटाओं के उपर एक चांद है। उनकी दाहिनी तरफ पुरुष की और बाईं ओर स्त्री की बाली है। यह स्वरूप तीन स्तरों को बतलाता है। पहला पौरुष और स्त्रीत्व रूप, दूसरा मन और भौतिकता और तीसरा नाम और रूपों के संसार के साथ अज्ञात और निराकार दुनिया। दक्षिणमूर्ति का बायां हाथ वरद मुद्रा को दर्शाता है जो दान की मुद्रा है। उनके दाहिने हाथ की मुद्रा में उनकी तर्जनी अंगुली अंगुठे को छूती दिखाई गई है जो ज्ञान या पांडित्य को दर्शाता है। यह मुद्रा उन्हें एक गुरु के रूप में भी दिखलाता है जो ज्ञान देते हैं। उनके दो और हाथ दिखाए गये हैं। उनके संकेत अलग-अलग हैं लेकिन वो सभी पांडित्य को दर्शाते हैं। यह एक ईंधनविहीन ताप की आग है या ध्यान का अभ्यास है, जो ज्ञान को दर्शाता है और उन सभी गांठों को जला देता है जो मन को विस्तृत होने से रोकते हैं। उनकी जटा मे लिपटा सांप ज्ञान की जगमगाहट को दर्शाता है और संसार में लिप्त होने के बजाय यह इसकी उत्पत्ति के गवाहों में से एक है। उनके पास मनकों की एक माला है जिसका उपयोग जाप करने और यादाश्त के लिए किया जाता है। उनके पास कई वाद्ययंत्र और किताबें हैं। उनके दाहिने पैर के नीचे अपस्मार नाम का एक राक्षस है जिसे विकृत यादों का राक्षस माना गया है और जो हमारे मन को अनंतता की ओर विस्तृत होने से रोकता है। शिव अपना बायां पैर अपनी दाहिनी जांघ पर रखते हैं। पारंपरिक रूप से शरीर का बायां हिस्सा प्रकृति को दर्शाता है और दायां हिस्सा मन को। नटराज की मूर्ति के अनुसार शिव अपने दाएं पैर को जमीन पर रखे हुए हैं और उनका दायां पैर या तो हवा में है या दाईं जांघ पर। इस छवि के विपरीत कृष्ण हमेशा अपने बाएं पैर पर आराम करते हैं या दायें पैर को बायें पैर के उपर रखते हैं। कृष्ण भौतिकता का आनंद लेते हैं पर वह इसमें ज्ञान को भी समाहित करते हैं। जब कृष्ण के दोनों पैर जमीन पर होते हैं तो इसका अर्थ है कि वो भौतिकता और मन दोनों को महत्ता देते हैं। शिव भौतिकता के उपर मन को महत्ता देते हैं, इसलिये उनका केवल एक पैर जमीन पर होता है और इस कारण उन्हें एकपद यानि कि एक पैर वाला भगवान कहा जाता है। इस प्रकार सांकेतिक रूप से यह रूप ज्ञान के कई प्रकारों को बतलाता है जैसे कि, भौतिकवाद की उथल-पुथल जो दुख का कारण बनती है और उस विचलित मन को स्थिर करने का ज्ञान। शिव के चरणों में कई संत बैठते हैं। शिव कभी-कभी उनलोगों को वेद और तंत्र का रहस्य बतलाते हैं। यह प्रवचन अगम या पौराणिक मंदिर परंपरा कहलाती है और यह निगम या वैदिक अनुष्ठान परंपरा का पूरक है। यह प्रवचन दक्षिणमूर्ति उपनिषद भी कहलाता है। शिव का यह रूप उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत की परंपराओं में अधिक लोकप्रिय है। कहानी के अनुसार सभी साधू शिव के प्रवचन को सुनने के लिए उत्तर की ओर गये और इस कारण पृथ्वी उनके बोझ से एक ओर झुक गया। धरती को संतुलित करने के लिए शिव ने अपने शिष्य अगस्त्य को दक्षिण की ओर यात्रा करने को कहा। यही कारण है कि अगस्त्य दक्षिण के महान साधुओं में गिने जाते हैं। जिन साधुओं ने प्रवचन सुना, उन्होंने शिव से व्याघ्रपद का दान मांगा ताकि वो आसानी से उनकी पूजा के लिए जंगल से फूल इकठ्ठा कर सकें। पतंजलि, सर्प, नंदी बैल और भृंगी को भी एक तीसरे पैर की आवश्यकता थी ताकि वो एक तिपाई की तरह खड़े हो सकें। हयग्रीव एक ऐसे पशु हैं जिनका सिर घोड़े का है और वो कृष्ण का एक रूप माने जाते हैं। कभी-कभी वो सूका का भी रूप माने जाते हैं जिसका सिर तोते का है और जो व्यास के पुत्र हैं। काल और कालीआदि शंकर ने दक्षिणमूर्ति स्त्रोतम की रचना की जिसमें उन्होंने महसूस किया कि किस प्रकार खामोश दिखने वाला यह युवा शिक्षक अपने ज्ञान से बूढ़े साधुओं को प्रकाशित करता है। शिव ज्ञान का साक्षात रूप हैं। साधुओं के द्वारा नहीं बल्कि स्वयं देवी के द्वारा उनसे प्रश्न पूछे गये। बाद में उन्होंने शिव से शादी कर ली और उन्होंने उन्हें प्रवचन के लिए और अपने ज्ञान को चिंतन के माध्यम से साधुओं के बीच साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। तंत्र में इसी प्रकार यह संवाद दिखाया गया है। अगर वो काल यानि समय हैं तो वो काली हैं जो समय को अपने अधीन रखती हैं। यह वो ही हैं जो शव या शिव में शव बनाती हैं। यह देवी ही हैं जो दक्षिण से हैं, जो भौतिकता और परिवर्तन को मूर्त रूप देती हैं और जवाबों को प्रेरित करती हैं। जवाब केवल बोलकर ही नहीं दिए जाते हैं बल्कि इन्हें नृत्य या गीतों के द्वारा भी दर्शाया जाता है। इसलिये भारतीय शास्त्रीय नृत्य इतना समृद्ध है।.