Thursday, 27 February 2025
कालभैरव
ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !
OM
सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश .
सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्
श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।
OM
सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ओउम काल,सोहंम काल।काल और महाकाल।अलील मध्ये अज्जर काल।वज्जर काल अनभय काल निर्भय काल।ये पांच काल हमारे पास।अमर काल भँवर काल ज्योति काल सरजीवन काल ये पांच काल हमारे सतगुरू।हमारे कारण दुनियां मरे जरें।ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना करें।विष्णु जी सृष्टि का पालन करें।महेश सृष्टि का संहार करें।नवखण्ड पृथ्वी को शेषनाग सिर पर धारण करें।सात वार बारह राशि पन्द्रह तिथि सत्ताईस नक्षत्र घटे बढ़े चलें।काल परमहँस गायत्री मंत्र को कौन जपन्ते।शिव जपन्ते।ओउम तो कौन।सोहंम तो कौन।तत्व तो कौन।ओउम तो शिव सोहंम तो शक्ति।परमहंस तत्व।ओउम हर हर हर महादेव।बंम बंम बंम।दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मुआ मुर्दा सरजीवन किया।अलील की काया।अलील की माया।अलील पुरुष ने घट पिण्ड को आन चेताया।गले नहीं हाड़ चाम की कोठी स्थिर रहें नाद बिन्द की काया।माया मछिन्द्रनाथ जी ने काल परमहँसास्त्र चलाया।किलकारी मार कालिका माई ने काल को भगाया।काली कंकाली महाकाली।कृष्ण वर्णी।शव वाहिनी।रुद्रदेवता की पोषणी।हाथ खड़ग खप्पर धारिणी।गले मुण्डमाला।हंसमुखी।जिव्हा ज्वाला।दन्तकाली।मधमांसकारी चौपटा मढ़ी मसान की रानी।मांस खायें।मध पी पीवें।रिद्धि सिद्धि लियाओ भस्मन्ती माई।भस्मन्ती माई जहाँ पर पाई।तहाँ रमाई।सत्य की नाती।धर्म की बेटी।इन्द्र की साली।अचलनाथ की चेली।काल की महा काली।नागों की नागिन।जोग को जोगिन।भोग की भोगिन।मन माने तो संग रमाई।नहीं तो मढ़ी मसान में फिरे अकेली।बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुवा।बोल बंम बंम काली माई की दुहाई।घोर काली अघोर काली।अज्जर काली वज्जर काली।भख जून निर्भय काली।अला बला भख।पापी पाखण्डी को भख।जति सती को रख।ओ काली माई तुम बाला ना वृद्धा।देव ना दानव।नर ना नारी।देवी जी तुम तो हो स्वंय परब्रम्ह काली।प्रथमें काली।द्वितीय कालरात्रि।तृतीय कपालिनी।चतुर्थे काम सुंदरी।पंचमी कामिनी।षष्टमें विरूपाक्षी।सप्तमे उग्रा।अष्टमे घोर रूपा।नवमे नरसिहीं दसमें वराही एकादशे रुद्रा द्वादशे डाकिनी।कालिका देवी के द्वादश नाम ह्रदय में ध्याऊँ।दो हाथ जोड़ तैतीस कोटि देवी देवताओं को जगाऊँ।कहे गुरु गोरक्ष नाथ सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धो काल परमहँस गायत्री मंत्र का सुमिरण करें।नाद बिन्द जांके घट जरें।तांकि सेवा ऋद्धि सिद्धि करें।तीन चुल्लू पानी के भरें।निर्भय जोगी जंगल फिरे ।मढ़ी मसान फिरे, फिरे सारे ब्रम्हाण्ड।अनहद नाद घूंघर बोल।गुरु शब्द गुरु ज्ञान।भरे संसार झरें संसार।फिरे योगी अनभय काल।कालिका माई हमारी तुमारी माई।हमको तुमको छोड़ और को ले जाई।तो नवखण्ड पृथ्वी माई में हल चल मच जाई।ॐ कालाय विदमहे महाकालाय धीमहि तन्नो काल परमहँसाय प्रचोदयात।इतना काल परमहँस गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्रयम्बक क्षेत्र कौलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पंथी अनन्त कोटि सिद्धो को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश
OM
ॐ गुरूजी अलख पुरुष ने बांधी काया बेगम डोर से हंसा आया | नाभी कमल से संसार रचाया, ह्रदय कमल से जीव का वासा कुन्ज कमल में निरंजन निराई, त्रिकुट महल में फिरी दुहाई |ॐ गुरूजी शबद के हम शिष्य हैं सोहं हमारा नाम, प्राण हमारा इष्ट है, काया हमारा गाँव |
कमंडल मंत्र
सत नमो आदेश गुरुजी को प्रदेश ॐ गुरुजी ॐ कार निरा निरंजन घट तत्सार अनन्त घट उनमन मन हाड़ चाम नीर तन पलटन्त काया उबटन्त नीर पडेन डि पीवे नीर कम जल घट हुआ निर्माण अमीरस पोयो पियो कमण्डल नोर सिद्ध सा मन हुद्याथिर | घट घट में सब सृष्टी समाई । त्रिवणी संग चन्दा रवि घट पिण्डे दीप ज्योती जति गोरक्ष घट-घट वाप देवी देवता तिरथ यात्रा साथ कमण्डल अमीरस धारा । घट का कोई जाने भेव आप कर्ता आप देव । इतना कमा मंत्र सम्पूर्ण भया । श्री नाथजी गुरुजी को आदेश-आदेश ।
-जय श्री आदि नाथ जी- ज्ञान चालीस
भैरव
सत नमो आदेश गुरु को आदेश ॐ गुरु जी, चण्डी-चण्डी तो प्रचण्डी अलावला फिरे नव-खण्डी । तीर बाँधू, तलवार बाँधू, बीस कोस पर बाँधू वीर चक्र ऊपर चक्र चले, भैरो बली के आगे धरे, छल चले, बल चले, तब जानवा काल-भैरों/ तेरा रूप । कौन भैंरों ? आदि भैरो, युगादि भैरो, त्रिकाल भैरों, कामरु देश रोला मचावे, जिस माता का दूध पिया, सो माता की रक्षा करना, अवधूत खप्पर में खाय । मसान में लेटे, काल-भैरों की पूजा कौन मेटे ? राजा मेटे राज-पाट से जाय योगी मेटे, योग-ध्यान से जाय, प्रजा मेटे । दूध-पूत से जाय, लेना भैरों, लौंग सुपारी, कड़वा प्याला, भेंट तुम्हारी । हाथ काती मोढ़े मढ़ा, जहाँ सिमरूँ तहाँ हाजिर खड़ा । श्री नाथ जी, गुरु जी - आदेश - आदेश ॥
भैरब सिद्धि अघोरी मंत्र :
श्वद सांचा पिण्ड काचा गुरु का बचन जुग जुग सांचा।।
भैरों
सत् नमो आदेश गुरु जी को आदेश । ॐ गुरु जी । तुम भैरों काली का पूत सदा रहे मतवाला, चढ़े तेल - सिंदूर / गल फूलों की माला, जिस किसी पर संकट पड़े, जो सुमिरे तुम्हें उसकी रक्षा करें, तुम हो रक्ष-पालं । भरी कटोरी तेल की, धन्य तुम्हारा प्रताप, काल-भैरो अकाल-भैरों। लाल- भैरों, जल-भैरों, थल- भैरों। बाल-भैरों, आकाश- भैरो, क्षेत्रपाल भैरो, सदा रहो कृपाल भैरो चोला जाप सम्पूर्ण भया, नाथ जी, गुरुजी आदेश - आदेश- आदेश
श्रीबटुक-भैरव मन्त्र -
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बदुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु काय ह्रीं ह्रां ह्रीं क्लीं क्लूं सः हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्री घूं उमलवरयूं हौं ह्रौं महाकालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष, मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष, मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-वृष्टि वुष्ट-युद्धि दुष्ट प्रयोगान् कारकान् दुष्ट-प्रयोगान्कु र्वति कारयति करिष्यति तां हन हन, उच्चाटय उच्चाटय स्तम्मय स्तम्भय, मारय मारय, मय-मय, घुनघुन, खेदय-छेदय, छिन्धि छिन्धि, हन हन, फ्रें-फ्रें-, बॅ--, ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्र हृह, बुं बुंकुं दुष्टं वारय-चारय, दारिद्रं हन हन, पापं मय मब, आरोग्यं कुरु कुरु, पर-बलानि लोभय-क्षोभय, क्ष क्ष क्षह्रीं बटुकाय, केलि-दद्राय नम॥
त्रिपुर सुन्दरी वैदिक एवं शाबर मन्त्र साधना
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
नाथ योग विद्या
ॐ गुरुजी ॐ कंठ बसे सरस्वती ह्रदय देव महेश भुला अक्षर ज्ञान का जोत कला प्रकाश, सिद्ध गौरी नन्द गणेश बुध को विनायक सिमरिये बल को सिमरिये हनुमंत, ऋद्ध-सिद्ध को श्री ईश्वर महादेव जी सिमरिये, श्री गंगा गौरी पार्वती माई जी तुम्हारे कन्त उमा देवी गौरजा पार्वती भस्मन्ती देवी हिरख मन अगर कुंकुम केशर कस्तुरी मिला कूपिया तिस्ते भया, एक टीका अमर सेंचो जी जीव संचिया शक्त्त स्वरूपी हाथ धरिया नाम धारियो श्री गणपतनाथ पूता जी तुम बैठो स्थान में जावा नहावण आवण-जावण किसी को न दीजिये अंकुश मारपर संग लीजिये । बण खण्ड मध्ये से आए श्री ईश्वर महादेव छूटी ललकार ईश्वर देख बालक क्रोप भरिया ज्यो घृत बसन्तर धरिया शिवजी आणि मन सा रीस फिरयो चक्र ले गयो शीश तीन भवन से भई हलूल श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी आ कहने लगी स्वामी जी पुत्र मारिया तिसका कौन विचार देवी जी मै नहीं जानो तुमरा पूत मै जानो कोई दैत्य न दूत गज हस्ती का शीश लियाऊं, काट आन अलख निरंजन के पास बिठाऊं, शंकर जी ल्याये हस्ती का शीश श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी करी असीस जब गनपट उठन्ते खेल करन्ते, महिमा उवरन्ते गणपत बैठे स्थान मकान उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम ल्याये श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी के आगे स्वामी जी तुम तो सिमरे सोची मोची तेली तंबोली ठठीहरा गनिहारा लुहारा क्षेत्र सिमरे क्षेत्रपाल अजुनी शंभू सिमरे महाकाल लाम्बी सूँड बालक भेष प्रथमे सिमरो आद गणेश पाँच कोस ऋद्ध उत्तर से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध दक्षिण से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पूर्व से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पश्चिम से ल्याऊं, दस कोस ऋद्ध अज गायब से ल्याऊं, इतनी ऋद्ध-सिद्ध दिये बिना न जाऊँ श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी तुम्हारी माया प्रथमे एक दन्त, द्वितीय मेघवर्ण, तृतीय गज करण, चतुर्थ लंबोधर, पंचमे विघ्नहरण, षष्टमे धूम्ररूप, सप्तमे विनायक, अष्टमे भालचंद्र, नवमे शील संतोष, दशमे हस्तमुख, एकादशे द्वारपाल, द्वादशे वरदायक एते गणपत गणेश नाम द्वादश सम्पूर्ण भया । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश ।