सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश . ॐ गुरु जी . ॐकार नाद से उत्पति माया .
आदि नाथ संग पार्वती माता . सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द का
जाने बिरला . 1!! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया . पर जोग निंद्रा भई
माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया . ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !!2!!
क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा . गर्भ ज्ञान
शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !!3!! सत गुरु ज्ञान
को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा ! देखो सिद्धों यही
ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कथ कर सुनाया !!4!!
आदि नाथ पारब्रह्म शिव शक्ति प्रथम आदि उत्पति माया ! ॐकार रुप नाद बिन्द
कहाया ,बिन्दु रुप बोलिए काया !!5!! उदै भइला सूर अस्त भईला चंदा दूहू
बीच कल्पना काल का फंदा उदै अस्त एक कर बासा तब जानिबा जोगींद्र जीवन आसा
! बारह कला रवि सोलह कला शशि ! चारी कला गुरुदेव निरंतर बसी !!6!! हीन पद
सुराया लागा डँसा ! तन का तेज ले उड़िया हँसा ! हँस का तेज ले थिर रहे
काया ! काल का भेद ले कहो गुरु राया !!7!! द्वै पंख छेदी एक है रहना ,चंद
सूर्य दोउ सम कर गहना ! ऊंच भै ऊपरै मध्य निरंतरे ता तल भाट जराई !!8!!
शीजी अमिरस कंचन हुआ यही विधि पिंजरे बनवै सुआ ! उपजत दीसन्त निपजत नाहीं
! आवरण नास्ति संसार माही !!9!! बूझले सत्गुरु बुद्धि भेद सिद्ध संकेत
,परचा जानी लगाबो हेत ! उरम धूरम ज्योति ज्वाला ,नौ कोटि खिड़की पूर ले
ताला !!10!! ताला ना टूट खिड़की न भांजे ,पिंड पड़े तो सत्गुरु लाजे ! भरे
सागर धुनि धूसर कूची तहां सकल विध है सोई सूची !!11!! यही विधि अतीत योगी
होई ,अमर पद ध्याबत बिरला कोई ! सहज मरे अष्ट पग धरना ,ज्ञान खड्ग ले काल
सण्हर्णा !!12!! अमर कोट काया एक कोट मध्ये ,जीतले यम पुरी राखि ले कंधे
! आत्मा झुझजती गोरखनाथ किया ! संसार विनाशा आपन जिया !!13!! झूझँत सुरा
बूझन्त पूरा अमर पद ध्याबँत गुरु ज्ञान वँका !दल को मारि जंजाल को जीतले
,निर्भय होई मिटिले मन की शंका ! अझूझि झूझि ले पैस दरिया ! मूल बिन वृष
अमिरस भरिया !!14!! तन मन कर ले शिव पूर मेला ,ज्ञान गुरु जोगी संसार
चेला ! मन राई चंचल थान स्थित नाहीं ! बाँधी ले पंचभूत आत्मा माही ! अलष
अकथ चछुबिन सूझिया ! सिद्ध का मार्ग साध के बूझिया !!15!! परख बिन गुरु
करे युगत बिन वहि मरे ,विचार उपरांति कछु ज्ञान नाहीं ! भ्रमि भूलें ते
वहि चले पंडिता ,उतरे पार ते फिरी समाहि !!16!! शब्द की परखा नहीँ सबद
हुआ ,ज्ञान का पारिखा जीबता मुंआ ! रहती करनी मुखे प्रकाश ,नासिका जानत
पहुप की बास !!17!! उलटी यंत्र धरे शिखर -आसन करे कोटि सर छूट घाव नाहीं
! सिलहट मध्ये काबरु जीतले ,निर्मल धूनी गगना माही !!18!! मन की भ्रमना
तब छूटते होई योगिँद्रा ,जब बिचारँत निहशबद की वाणी ! नैन कै दाता सार
धरि पीसीबा तब योग पद दुर्लभ सत्य कर जानी !!19!! उलटी गँगा ऊपर चले धरान
ऊपर ,मिले नीर में पैस्सी करि अग्नि जाले ! घटहि में पै शिखर कूप पानी
भरे ,तब पई परिपुरुशा आप उजाले !ज्ञान के के प्रगटे श्री शम्भुनाथ पाया
,अकल अकथ जती गोरखनाथ ध्याया !!20!! संसार में भ्रमिया सर्व भ्रम सोई
,निज पद पीबता बिनस्या ना कोई !बजरंग कोटरि पर दल पूरा ! पंच मुंआ सब जग
पहुँचा स सुरा !!21!! मन सो झूझना खाँड़ा न लागे शून्य गढ़ रम रहे तो दीप
धूनी जागे ! धरणी ना सोखे अग्नि न खाई ,वैली का रस ले भौंरा न जाई !
!22!! कथनी कथि हो पंडित रहनी न पाई ! आचार के बँधे मनसा गमाई ! कथत श्री
शंभूनाथ सुनो नर लोई भ्रम में भूला सो बहुरा न कोई !!23!! भूल्या सो
भूल्या बहुरि चेतना ,संसार के लोहे आपा न रेतना ! भेष तज भ्रम तज राखी
सत्य सोई ,तत बिचारता देवता होई !!24!! आपा सोँधो ब्रह्म निरोधि सहज पलटी
जोती ! काया के भीतर मणि माणिक निपजे तहां धुनि धुनि बरसें मोती !!25!!
अरध उरध सम्पुश्टि करीजे !शंखनि नाल अमीरस पीजे ! अखंड मण्डल तहां नाद
मेरी ले ,हरि आसन तहां भक्त करीले !!26!! आलेख मन्दिर तहां शिव शक्ति
निबासा ,सहज शून्य भया प्रकासा ! तहां चंद बिन चाँदनी अग्नि बिन उजाला !
ए तन भेद अंत वृद्ध वाला !!27!! करताज तजी हूँ आसक्त hu हूँ न जाई ,मन
मृग राखिले वाड़ी न पाई ! आकाश वाड़ी पाताल कुआँ भरी भरी सीचता जो सिद्ध
huaaहूआ !!28!! अवधू अमर कोटकाया आलेख दरवाजा ! ज्ञानी gadगढ़ आसन प्राण
भयो राजा !!29!! अवधू फेरी ले तो तत सार बुद्धि सांच ! नही toतौ लोहा
गडिले तो कंचन नहीँ toतो काँच !!30!! अवधू सिद्धा पाया साधक पाया ते
ऊतरिया पार कथँत जती गोरखनाथ चेते न जानत विचार ते जल भए अंगार !!31!!
अवधू ऐसा नगर हमारा तिहा जीव आवो ऊजु द्वार !अरध उरध बजार मण्डियां है
गौरष कहें विचार !!32!! हरि प्राण पातिसाह विचार काजी !पंच तत ते उजहदार
,मन पवन होऊं हस्ती घोड़ा ,गिनाँते आंखै भंडार !!33!! काया हमारी शहर
बोलिये मन बोलिये हज दार ! चेतन पहरे कोतवाल बोलिये ,तो चोर न झांकें
द्वार !!34!! तीनसौ साठ चीरा gadगढ़ रचीले सोलह खनिले खाई !नव दरवाजा
प्रगट डीसे दसवां लखा न जाई !!35!! अठारह भार कोट कन्ठजरा लाईले बहत्तर
कोठरी निपाई ! नव सत्र ऊपरे जंतर फिरे ,तब गाया गढ़ लिया नहीँ जाई !!36!!
अनहद घड़ी घड़ियाल बजाइले ,परम ज्योति दुई दीपक लाई ! काम क्रोध दोई गरदन
मारिले ,ऐसी अदली पात शाही बाबे आदम चलाई !!37!! तहां सत्य बीबी संतोष
साहीजादा सीमा भक्ति द्वै दाई ! आदि नाथ नाती मत्स्येन्द्र पूता काया
नगरी गोरख बसाई !!38!! ऐसा उपदेश दिखै श्री गोरख राया , जिनी जगचतुर वरन
राह लाया पढ़ले ससंबेद करिले विधि ज़षेद !जानिले भेदान भेद पूरिले आशा
अमेद ,विषमी साधे मंसारी संझाया पंचों बखत सार ! रहिबा दसवें द्वारी
सैइबा पद निराकार !!39!! जप ले अजपा जाप ! विचार लेआपो आप ,छुटला सब
बियाप ! लिपे नाहीं तहां पुन्य पाप ! अहो निष समो ध्यान ! निरंतर रमे
बा राम ,कथे गोरखनाथ जी ज्ञान ; पाईला परम निर्धान !!40!! श्री नाथ जी को
आदेश !!!
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