Wednesday 2 July 2014

निर्वाण समाध



ॐ गुरु जी सतगुरु खोजोमन कर चंगा इस विधि रहना उत्तम संगा। सहजे संगम आवे हाथ श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी कंचन काया ज्ञान रतन सतगुरु खोजोलाख यतन। हस्तीमनु राखो डाट श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी बोलन चालन बहु जंजाला गुरु वचनी-वचनी योग रसाला। नियम धर्म दोराखो पास श्रीगुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी निरे निरंतर सिद्धों का वासाइच्छा भोजन परम निवासा। काम क्रोध अहंकार निवार श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी पहिले छोड़ो वाद विवाद पीछे छोड़ो जिभ्याका स्वाद। त्यागोहर्ष और विषाद श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी आलस निद्रा छींक जंभा तृष्णा डायन बन जग को खा। आकुल व्याकुल बहु जंजाल श्रीगुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी आलस तोड़ोनिद्रा छोड़ो गुरु चरण में इच्छा जोड़ो। जिह्वा इंद्री राखो डाट श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी योग दामोदर भगवाकरोज्योतिनाथ का दर्शन करो। जत सत दो राखोपास श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी अगम अगोचर कंठीबंध द्वादस वायु खेले चौसठ फंद। अगम पुजारीखांडे की धार श्रीगुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी डेरे डूंगरे चढ़ नहीं मारना राजे द्वारे पर पग नहीं धरना छोड़ो राजा रंग की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी जड़ी बूटी कीबहु विस्तारा परम जोत का अंत न पारा। जड़ी बूटी से कारज सरे वैद्य धवंतरी काहे को मरे॥

जड़ी बूटी सोचो मत को पहले रांड वैद्य की हो। जड़ी बूटी वैद्यों की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी वेद शास्त्र को बहु विस्तारापरम जोत का अंत न पारा। पढ़े-लिखे से अमर होय ब्रह्मा परले काहे को होय। वेद शास्त्र ब्राह्मणों कीआस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी कनक कामनी दोनों त्यागो अन्न भिक्षा पांच घर मांगो। छोड़ो माया मोह की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी सोने चांदी का बहु विस्तारापरम जोत का अंत न पारा। सोना चांदी से कारज सरे भूपति चक्रवर्ती राजे राज काहे को तजे। सोना चांदी जगत की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी ज्योतिरूप एक ओंकारा सतगुरु खोजोहोवे निस्तारा। गुरु वचनों के रहना पास श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी गगनमंडल में गुरु जी का वासा जहां पर हंसा करे निवासा। पांच तत्त्व ले रमना साथ श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी उड़ान योगी मृड़ान कायामरे न योगीधरे न औतार। सत्य सत्य भाषंते श्री शंभु जती गुरु गोरक्ष नाथ निर्वाण समाध॥

नाथ जीगुरु जी आदेश आदेश आदेश 

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