Thursday, 27 February 2025


 

कालभैरव

 ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !

ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने
का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,.
सोने का घंटा, सोने की संकुली.----

ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे
का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,
तामे का घंटा, तामे की संकुली---

ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे
का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे
का घंटा, रूपे की संकुली ----

ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,
तामे का किवार,
अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,
अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली----

OM

 सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश .

ॐ गुरु जी.....ॐ कार नाद से उत्पति माया .आदि नाथ संग पार्वती माता
.सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द काजाने बिरला
! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया .पर जोग निंद्रा भई माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया .ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा .गर्भ ज्ञान शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !सत गुरु ज्ञान को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा देखो सिद्धों यही ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कर सुनाया !

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्

 श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।

मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।

OM

 सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ओउम काल,सोहंम काल।काल और महाकाल।अलील मध्ये अज्जर काल।वज्जर काल अनभय काल निर्भय काल।ये पांच काल हमारे पास।अमर काल भँवर काल ज्योति काल सरजीवन काल ये पांच काल हमारे सतगुरू।हमारे कारण दुनियां मरे जरें।ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना करें।विष्णु जी सृष्टि का पालन करें।महेश सृष्टि का संहार करें।नवखण्ड पृथ्वी को शेषनाग सिर पर धारण करें।सात वार बारह राशि पन्द्रह तिथि सत्ताईस नक्षत्र घटे बढ़े चलें।काल परमहँस गायत्री मंत्र को कौन जपन्ते।शिव जपन्ते।ओउम तो कौन।सोहंम तो कौन।तत्व तो कौन।ओउम तो शिव सोहंम तो शक्ति।परमहंस तत्व।ओउम हर हर हर महादेव।बंम बंम बंम।दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मुआ मुर्दा सरजीवन किया।अलील की काया।अलील की माया।अलील पुरुष ने घट पिण्ड को आन चेताया।गले नहीं हाड़ चाम की कोठी स्थिर रहें नाद बिन्द की काया।माया मछिन्द्रनाथ जी ने काल परमहँसास्त्र चलाया।किलकारी मार कालिका माई ने काल को भगाया।काली कंकाली महाकाली।कृष्ण वर्णी।शव वाहिनी।रुद्रदेवता की पोषणी।हाथ खड़ग खप्पर धारिणी।गले मुण्डमाला।हंसमुखी।जिव्हा ज्वाला।दन्तकाली।मधमांसकारी चौपटा मढ़ी मसान की रानी।मांस खायें।मध पी पीवें।रिद्धि सिद्धि लियाओ भस्मन्ती माई।भस्मन्ती माई जहाँ पर पाई।तहाँ रमाई।सत्य की नाती।धर्म की बेटी।इन्द्र की साली।अचलनाथ की चेली।काल की महा काली।नागों की नागिन।जोग को जोगिन।भोग की भोगिन।मन माने तो संग रमाई।नहीं तो मढ़ी मसान में फिरे अकेली।बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुवा।बोल बंम बंम काली माई की दुहाई।घोर काली अघोर काली।अज्जर काली वज्जर काली।भख जून निर्भय काली।अला बला भख।पापी पाखण्डी को भख।जति सती को रख।ओ काली माई तुम बाला ना वृद्धा।देव ना दानव।नर ना नारी।देवी जी तुम तो हो स्वंय परब्रम्ह काली।प्रथमें काली।द्वितीय कालरात्रि।तृतीय कपालिनी।चतुर्थे काम सुंदरी।पंचमी कामिनी।षष्टमें विरूपाक्षी।सप्तमे उग्रा।अष्टमे घोर रूपा।नवमे नरसिहीं दसमें वराही एकादशे रुद्रा द्वादशे डाकिनी।कालिका देवी के द्वादश नाम ह्रदय में ध्याऊँ।दो हाथ जोड़ तैतीस कोटि देवी देवताओं को जगाऊँ।कहे गुरु गोरक्ष नाथ सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धो काल परमहँस गायत्री मंत्र का सुमिरण करें।नाद बिन्द जांके घट जरें।तांकि सेवा ऋद्धि सिद्धि करें।तीन चुल्लू पानी के भरें।निर्भय जोगी जंगल फिरे ।मढ़ी मसान फिरे, फिरे सारे ब्रम्हाण्ड।अनहद नाद घूंघर बोल।गुरु शब्द गुरु ज्ञान।भरे संसार झरें संसार।फिरे योगी अनभय काल।कालिका माई हमारी तुमारी माई।हमको तुमको छोड़ और को ले जाई।तो नवखण्ड पृथ्वी माई में हल चल मच जाई।ॐ कालाय विदमहे महाकालाय धीमहि तन्नो काल परमहँसाय प्रचोदयात।इतना काल परमहँस गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्रयम्बक क्षेत्र कौलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पंथी अनन्त कोटि सिद्धो को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

OM

 ॐ गुरूजी अलख पुरुष ने बांधी काया बेगम डोर से हंसा आया | नाभी कमल से संसार रचाया, ह्रदय कमल से जीव का वासा कुन्ज कमल में निरंजन निराई, त्रिकुट महल में फिरी दुहाई |ॐ गुरूजी शबद के हम शिष्य हैं सोहं हमारा नाम, प्राण हमारा इष्ट है, काया हमारा गाँव |

कमंडल मंत्र

 सत नमो आदेश गुरुजी को प्रदेश ॐ गुरुजी ॐ कार निरा निरंजन घट तत्सार अनन्त घट उनमन मन हाड़ चाम नीर तन पलटन्त काया उबटन्त नीर पडेन डि पीवे नीर कम जल घट हुआ निर्माण अमीरस पोयो पियो कमण्डल नोर सिद्ध सा मन हुद्याथिर | घट घट में सब सृष्टी समाई । त्रिवणी संग चन्दा रवि घट पिण्डे दीप ज्योती जति गोरक्ष घट-घट वाप देवी देवता तिरथ यात्रा साथ कमण्डल अमीरस धारा । घट का कोई जाने भेव आप कर्ता आप देव । इतना कमा मंत्र सम्पूर्ण भया । श्री नाथजी गुरुजी को आदेश-आदेश ।

-जय श्री आदि नाथ जी- ज्ञान चालीस


सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश . ॐ गुरु जी . ॐकार नाद से उत्पति माया .
आदि नाथ संग पार्वती माता . सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द का
जाने बिरला . 1!! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया . पर जोग निंद्रा भई
माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया . ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !!2!!
क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा . गर्भ ज्ञान
शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !!3!! सत गुरु ज्ञान
को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा ! देखो सिद्धों यही
ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कथ कर सुनाया !!4!!
आदि नाथ पारब्रह्म शिव शक्ति प्रथम आदि उत्पति माया ! ॐकार रुप नाद बिन्द
कहाया ,बिन्दु रुप बोलिए काया !!5!! उदै भइला सूर अस्त भईला चंदा दूहू
बीच कल्पना काल का फंदा उदै अस्त एक कर बासा तब जानिबा जोगींद्र जीवन आसा
! बारह कला रवि सोलह कला शशि ! चारी कला गुरुदेव निरंतर बसी !!6!! हीन पद
सुराया लागा डँसा ! तन का तेज ले उड़िया हँसा ! हँस का तेज ले थिर रहे
काया ! काल का भेद ले कहो गुरु राया !!7!! द्वै पंख छेदी एक है रहना ,चंद
सूर्य दोउ सम कर गहना ! ऊंच भै ऊपरै मध्य निरंतरे ता तल भाट जराई !!8!!
शीजी अमिरस कंचन हुआ यही विधि पिंजरे बनवै सुआ ! उपजत दीसन्त निपजत नाहीं
! आवरण नास्ति संसार माही !!9!! बूझले सत्गुरु बुद्धि भेद सिद्ध संकेत
,परचा जानी लगाबो हेत ! उरम धूरम ज्योति ज्वाला ,नौ कोटि खिड़की पूर ले
ताला !!10!! ताला ना टूट खिड़की न भांजे ,पिंड पड़े तो सत्गुरु लाजे ! भरे
सागर धुनि धूसर कूची तहां सकल विध है सोई सूची !!11!! यही विधि अतीत योगी
होई ,अमर पद ध्याबत बिरला कोई ! सहज मरे अष्ट पग धरना ,ज्ञान खड्ग ले काल
सण्हर्णा !!12!! अमर कोट काया एक कोट मध्ये ,जीतले यम पुरी राखि ले कंधे
! आत्मा झुझजती गोरखनाथ किया ! संसार विनाशा आपन जिया !!13!! झूझँत सुरा
बूझन्त पूरा अमर पद ध्याबँत गुरु ज्ञान वँका !दल को मारि जंजाल को जीतले
,निर्भय होई मिटिले मन की शंका ! अझूझि झूझि ले पैस दरिया ! मूल बिन वृष
अमिरस भरिया !!14!! तन मन कर ले शिव पूर मेला ,ज्ञान गुरु जोगी संसार
चेला ! मन राई चंचल थान स्थित नाहीं ! बाँधी ले पंचभूत आत्मा माही ! अलष
अकथ चछुबिन सूझिया ! सिद्ध का मार्ग साध के बूझिया !!15!! परख बिन गुरु
करे युगत बिन वहि मरे ,विचार उपरांति कछु ज्ञान नाहीं ! भ्रमि भूलें ते
वहि चले पंडिता ,उतरे पार ते फिरी समाहि !!16!! शब्द की परखा नहीँ सबद
हुआ ,ज्ञान का पारिखा जीबता मुंआ ! रहती करनी मुखे प्रकाश ,नासिका जानत
पहुप की बास !!17!! उलटी यंत्र धरे शिखर -आसन करे कोटि सर छूट घाव नाहीं
! सिलहट मध्ये काबरु जीतले ,निर्मल धूनी गगना माही !!18!! मन की भ्रमना
तब छूटते होई योगिँद्रा ,जब बिचारँत निहशबद की वाणी ! नैन कै दाता सार
धरि पीसीबा तब योग पद दुर्लभ सत्य कर जानी !!19!! उलटी गँगा ऊपर चले धरान
ऊपर ,मिले नीर में पैस्सी करि अग्नि जाले ! घटहि में पै शिखर कूप पानी
भरे ,तब पई परिपुरुशा आप उजाले !ज्ञान के के प्रगटे श्री शम्भुनाथ पाया
,अकल अकथ जती गोरखनाथ ध्याया !!20!! संसार में भ्रमिया सर्व भ्रम सोई
,निज पद पीबता बिनस्या ना कोई !बजरंग कोटरि पर दल पूरा ! पंच मुंआ सब जग
पहुँचा स सुरा !!21!! मन सो झूझना खाँड़ा न लागे शून्य गढ़ रम रहे तो दीप
धूनी जागे ! धरणी ना सोखे अग्नि न खाई ,वैली का रस ले भौंरा न जाई !
!22!! कथनी कथि हो पंडित रहनी न पाई ! आचार के बँधे मनसा गमाई ! कथत श्री
शंभूनाथ सुनो नर लोई भ्रम में भूला सो बहुरा न कोई !!23!! भूल्या सो
भूल्या बहुरि चेतना ,संसार के लोहे आपा न रेतना ! भेष तज भ्रम तज राखी
सत्य सोई ,तत बिचारता देवता होई !!24!! आपा सोँधो ब्रह्म निरोधि सहज पलटी
जोती ! काया के भीतर मणि माणिक निपजे तहां धुनि धुनि बरसें मोती !!25!!
अरध उरध सम्पुश्टि करीजे !शंखनि नाल अमीरस पीजे ! अखंड मण्डल तहां नाद
मेरी ले ,हरि आसन तहां भक्त करीले !!26!! आलेख मन्दिर तहां शिव शक्ति
निबासा ,सहज शून्य भया प्रकासा ! तहां चंद बिन चाँदनी अग्नि बिन उजाला !
ए तन भेद अंत वृद्ध वाला !!27!! करताज तजी हूँ आसक्त hu हूँ न जाई ,मन
मृग राखिले वाड़ी न पाई ! आकाश वाड़ी पाताल कुआँ भरी भरी सीचता जो सिद्ध
huaaहूआ !!28!! अवधू अमर कोटकाया आलेख दरवाजा ! ज्ञानी gadगढ़ आसन प्राण
भयो राजा !!29!! अवधू फेरी ले तो तत सार बुद्धि सांच ! नही toतौ लोहा
गडिले तो कंचन नहीँ toतो काँच !!30!! अवधू सिद्धा पाया साधक पाया ते
ऊतरिया पार कथँत जती गोरखनाथ चेते न जानत विचार ते जल भए अंगार !!31!!
अवधू ऐसा नगर हमारा तिहा जीव आवो ऊजु द्वार !अरध उरध बजार मण्डियां है
गौरष कहें विचार !!32!! हरि प्राण पातिसाह विचार काजी !पंच तत ते उजहदार
,मन पवन होऊं हस्ती घोड़ा ,गिनाँते आंखै भंडार !!33!! काया हमारी शहर
बोलिये मन बोलिये हज दार ! चेतन पहरे कोतवाल बोलिये ,तो चोर न झांकें
द्वार !!34!! तीनसौ साठ चीरा gadगढ़ रचीले सोलह खनिले खाई !नव दरवाजा
प्रगट डीसे दसवां लखा न जाई !!35!! अठारह भार कोट कन्ठजरा लाईले बहत्तर
कोठरी निपाई ! नव सत्र ऊपरे जंतर फिरे ,तब गाया गढ़ लिया नहीँ जाई !!36!!
अनहद घड़ी घड़ियाल बजाइले ,परम ज्योति दुई दीपक लाई ! काम क्रोध दोई गरदन
मारिले ,ऐसी अदली पात शाही बाबे आदम चलाई !!37!! तहां सत्य बीबी संतोष
साहीजादा सीमा भक्ति द्वै दाई ! आदि नाथ नाती मत्स्येन्द्र पूता काया
नगरी गोरख बसाई !!38!! ऐसा उपदेश दिखै श्री गोरख राया , जिनी जगचतुर वरन
राह लाया पढ़ले ससंबेद करिले विधि ज़षेद !जानिले भेदान भेद पूरिले आशा
अमेद ,विषमी साधे मंसारी संझाया पंचों बखत सार ! रहिबा दसवें द्वारी
सैइबा पद निराकार !!39!! जप ले अजपा जाप ! विचार लेआपो आप ,छुटला सब
बियाप ! लिपे नाहीं तहां पुन्य पाप ! अहो निष समो ध्यान ! निरंतर रमे
बा राम ,कथे गोरखनाथ जी ज्ञान ; पाईला परम निर्धान !!40!! श्री नाथ जी को
आदेश !!!

भैरव

 सत नमो आदेश गुरु को आदेश ॐ गुरु जी, चण्डी-चण्डी तो प्रचण्डी अलावला फिरे नव-खण्डी । तीर बाँधू, तलवार बाँधू, बीस कोस पर बाँधू वीर चक्र ऊपर चक्र चले, भैरो बली के आगे धरे, छल चले, बल चले, तब जानवा काल-भैरों/ तेरा रूप । कौन भैंरों ? आदि भैरो, युगादि भैरो, त्रिकाल भैरों, कामरु देश रोला मचावे, जिस माता का दूध पिया, सो माता की रक्षा करना, अवधूत खप्पर में खाय । मसान में लेटे, काल-भैरों की पूजा कौन मेटे ? राजा मेटे राज-पाट से जाय योगी मेटे, योग-ध्यान से जाय, प्रजा मेटे । दूध-पूत से जाय, लेना भैरों, लौंग सुपारी, कड़वा प्याला, भेंट तुम्हारी । हाथ काती मोढ़े मढ़ा, जहाँ सिमरूँ तहाँ हाजिर खड़ा । श्री नाथ जी, गुरु जी - आदेश - आदेश ॥

भैरब सिद्धि अघोरी मंत्र :

ॐ नमो काल कपाल महाकाल भैरब फिरे नबखण्ड धरती कामरू
देश की काली बिद्या, चलाबे अघोरी, खोपडी में खाये मसाण में
लोट चेते प्रचण्ड धूणा, लगाबे ध्यान तेरा, मांस मदिरा भोग धरे,
भूत भैरब, काल, भैरब, भैरू अघोर, तेरी शक्ति अपरम्परा तेरी
कोई जाने ना सार, तूही आदि भैरब अनादि भैरब भैरु का चेला
ध्यानी ज्ञानी जब भी तेरा ध्यान लगाबें पाबे निकट सदा तुही रख्या
करे कृपालू हम अघोरी का चेला है मरघट बाला अघोर भैरू मुझ
पर दया करों दो मुझे शक्ति, भक्ति, पूजूं मैं अमाबस्या की रात
देऊं मद की धार, मेरो इछित कारज पूर्ण कराबो न करो न
कराबो तो काली कंकाली खपडबाली की आण, कामरू
कामाख्या माई की। फिरे आगना, सारा अघोरियों की आण अब
भी ना करें तो जाये संत तेरा फिर भी न करें तो गंगा यमुना उल्टी
बहे। चल मसाण बाला काल भेरू करके श्वान की सबारी,
जोगण साथ लिये चलो, मेरो कारज करके आबे तो जानबा
काला भेरू कामरू कामाख्या माई का बेटा काल ,नाथजी का
मंत्र कभी न जाबें झूठा, तेरी शक्ति  नाथ की शक्ति

श्वद सांचा पिण्ड काचा गुरु का बचन जुग जुग सांचा।। 

भैरों

 सत् नमो आदेश गुरु जी को आदेश । ॐ गुरु जी । तुम भैरों काली का पूत सदा रहे मतवाला, चढ़े तेल - सिंदूर / गल फूलों की माला, जिस किसी पर संकट पड़े, जो सुमिरे तुम्हें उसकी रक्षा करें, तुम हो रक्ष-पालं । भरी कटोरी तेल की, धन्य तुम्हारा प्रताप, काल-भैरो अकाल-भैरों। लाल- भैरों, जल-भैरों, थल- भैरों। बाल-भैरों, आकाश- भैरो, क्षेत्रपाल भैरो, सदा रहो कृपाल भैरो चोला जाप सम्पूर्ण भया, नाथ जी, गुरुजी आदेश - आदेश- आदेश

श्रीबटुक-भैरव मन्त्र -

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बदुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु काय ह्रीं ह्रां ह्रीं क्लीं क्लूं सः हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्री घूं उमलवरयूं हौं ह्रौं महाकालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष, मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष, मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-वृष्टि वुष्ट-युद्धि दुष्ट प्रयोगान् कारकान् दुष्ट-प्रयोगान्कु र्वति कारयति करिष्यति तां हन हन, उच्चाटय उच्चाटय स्तम्मय स्तम्भय, मारय मारय, मय-मय, घुनघुन, खेदय-छेदय, छिन्धि छिन्धि, हन हन, फ्रें-फ्रें-, बॅ--, ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्र हृह, बुं बुंकुं दुष्टं वारय-चारय, दारिद्रं हन हन, पापं मय मब, आरोग्यं कुरु कुरु, पर-बलानि लोभय-क्षोभय, क्ष क्ष क्षह्रीं बटुकाय, केलि-दद्राय नम॥ 

त्रिपुर सुन्दरी वैदिक एवं शाबर मन्त्र साधना

ध्यान मंत्र
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बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों। 
नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।। 
हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती। 
श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

आवाहन मंत्र
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ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

मुलमंत्रं
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ऊं ह्रीं कं ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।

त्रिपुर सुन्दरी शाबर मन्त्र
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ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता | 
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो: 

ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं 

नाथ योग विद्या

ॐ गुरुजी ॐ कंठ बसे सरस्वती ह्रदय देव महेश भुला अक्षर ज्ञान का जोत कला प्रकाश, सिद्ध गौरी नन्द गणेश बुध को विनायक सिमरिये बल को सिमरिये हनुमंत, ऋद्ध-सिद्ध को श्री ईश्वर महादेव जी सिमरिये, श्री गंगा गौरी पार्वती माई जी तुम्हारे कन्त उमा देवी गौरजा पार्वती भस्मन्ती देवी हिरख मन अगर कुंकुम केशर कस्तुरी मिला कूपिया तिस्ते भया, एक टीका अमर सेंचो जी जीव संचिया शक्त्त स्वरूपी हाथ धरिया नाम धारियो श्री गणपतनाथ पूता जी तुम बैठो स्थान में जावा नहावण आवण-जावण किसी को न दीजिये अंकुश मारपर संग लीजिये । बण खण्ड मध्ये से आए श्री ईश्वर महादेव छूटी ललकार ईश्वर देख बालक क्रोप भरिया ज्यो घृत बसन्तर धरिया शिवजी आणि मन सा रीस फिरयो चक्र ले गयो शीश तीन भवन से भई हलूल श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी आ कहने लगी स्वामी जी पुत्र मारिया तिसका कौन विचार देवी जी मै नहीं जानो तुमरा पूत मै जानो कोई दैत्य न दूत गज हस्ती का शीश लियाऊं, काट आन अलख निरंजन के पास बिठाऊं, शंकर जी ल्याये हस्ती का शीश श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी करी असीस जब गनपट उठन्ते खेल करन्ते, महिमा उवरन्ते गणपत बैठे स्थान मकान उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम ल्याये श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी के आगे स्वामी जी तुम तो सिमरे सोची मोची तेली तंबोली ठठीहरा गनिहारा लुहारा क्षेत्र सिमरे क्षेत्रपाल अजुनी शंभू सिमरे  महाकाल लाम्बी सूँड बालक भेष प्रथमे सिमरो आद गणेश पाँच कोस ऋद्ध उत्तर से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध दक्षिण से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पूर्व से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पश्चिम से ल्याऊं, दस कोस ऋद्ध अज गायब से ल्याऊं, इतनी ऋद्ध-सिद्ध दिये बिना न जाऊँ श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी तुम्हारी माया प्रथमे एक दन्त, द्वितीय मेघवर्ण, तृतीय गज करण, चतुर्थ लंबोधर, पंचमे विघ्नहरण, षष्टमे धूम्ररूप, सप्तमे विनायक, अष्टमे भालचंद्र, नवमे शील संतोष, दशमे हस्तमुख, एकादशे द्वारपाल, द्वादशे वरदायक एते गणपत गणेश नाम द्वादश सम्पूर्ण भया । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश । 

Friday, 3 January 2025

।। प्रार्थना ।।

 ऊँ शिव गोरक्ष योगी

गंगे हर-नर्मदे हर, जटाशङ़्करी हर ऊँ नमो पार्वती पतये हर,
बोलिये श्री शम्भू जती गुरु गोरक्षनाथ महाराज की जय, माया
स्वरूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ महाराज की जय, नवनाथ चौरासी सिद्धों
की जय, भेष भगवान की जय, अटल क्षेत्र की जय, रमतेश्वर
महाराज की जय, कदली काल भैरवनाथ जी की जय, पात्र देवता
की जय, ज्चाला महामाई की जय, सनातन धर्म की जय, अपने-अपने
गुरु महाराज की जय, गौ-ब्राह्मण की जय, बोले साचे दरबार की जय,
हर हर महादेव की जय।
कपूर्रगौरम् करुणावतारम्
संसारसारम् भुजगेन्द्र हारम्।
सदा वसन्तम् हृदयारविन्दे
भवं भवानी सहितम् नमामि।।
मन्दारमाला कलिनाल कायै
कपालमालाङि़्कत कन्थराय।
नमः शिवायै च नमः शिवाय
गोरक्ष बालम् गुरु शिष्य पालम्
शेषांहिमालम् शशिखण्ड भालम्।
कालस्य कालम् जितजन्म जालम्
वन्दे जटालम जगदब्जनालम्।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर!
गुरुः साक्षात्परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवै नमः।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः, पूजा मूलं गुरोः पदम्
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरोः कृपा
मन्त्र सत्यं पूजा सत्यं सत्यदेव निरन्जनम्
गुरुवाक्यं सदा सत्यं सत्यमेकम् परंपदम्
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविड़म् त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देव देव!
आकाशे ताडका लिंगम
पाताले वटुकेश्वरम्
मर्त्ये लोके महाकालम्
सर्व लिंगम नमोस्तुते।।
शेली श्रृंगी शिर जटा झोली भगवा भेष,
कानन कुण्डल भस्म लसै, शिव गोरक्ष आदेश।।
ऊँकार तेरा आधार
तीन लोक में जय-जयकार।
नाद बाजे काल भागे,
ज्ञान की टोपी, गोरख साजे
गले नाद, पुष्पन की माला
रक्षा करें, श्री शम्भुजति गुरु
गोरक्षनाथ जी बाला।।
चार खाणी चार बानी
चन्द्र सूर्य पवन पानी
एको देवा सर्वत्र सेवा
ज्योति पाटले परसो देवा
कानन कुण्डल गले नाद
करो सिद्धो नाद्कार
सिद्ध गुरुवरों को आदेश! आदेश!!

गौरी गणेश स्तवन शाबर मंत्र

  ॐ गुरुजी ॐ कंठ बसे सरस्वती ह्रदय देव महेश भुला अक्षर ज्ञान का जोत कला प्रकाश, सिद्ध गौरी नन्द गणेश बुध को विनायक सिमरिये बल को सिमरिये हनुमंत, ऋद्ध-सिद्ध को श्री ईश्वर महादेव जी सिमरिये, श्री गंगा गौरी पार्वती माई जी तुम्हारे कन्त उमा देवी गौरजा पार्वती भस्मन्ती देवी हिरख मन अगर कुंकुम केशर कस्तुरी मिला कूपिया तिस्ते भया, एक टीका अमर सेंचो जी जीव संचिया शक्त्त स्वरूपी हाथ धरिया नाम धारियो श्री गणपतनाथ पूता जी तुम बैठो स्थान में जावा नहावण आवण-जावण किसी को न दीजिये अंकुश मारपर संग लीजिये । बण खण्ड मध्ये से आए श्री ईश्वर महादेव छूटी ललकार ईश्वर देख बालक क्रोप भरिया ज्यो घृत बसन्तर धरिया शिवजी आणि मन सा रीस फिरयो चक्र ले गयो शीश तीन भवन से भई हलूल श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी आ कहने लगी स्वामी जी पुत्र मारिया तिसका कौन विचार देवी जी मै नहीं जानो तुमरा पूत मै जानो कोई दैत्य न दूत गज हस्ती का शीश लियाऊं, काट आन अलख निरंजन के पास बिठाऊं, शंकर जी ल्याये हस्ती का शीश श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी करी असीस जब गनपट उठन्ते खेल करन्ते, महिमा उवरन्ते गणपत बैठे स्थान मकान उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम ल्याये श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी के आगे स्वामी जी तुम तो सिमरे सोची मोची तेली तंबोली ठठीहरा गनिहारा लुहारा क्षेत्र सिमरे क्षेत्रपाल अजुनी शंभू सिमरे  महाकाल लाम्बी सूँड बालक भेष प्रथमे सिमरो आद गणेश पाँच कोस ऋद्ध उत्तर से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध दक्षिण से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पूर्व से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पश्चिम से ल्याऊं, दस कोस ऋद्ध अज गायब से ल्याऊं, इतनी ऋद्ध-सिद्ध दिये बिना न जाऊँ श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी तुम्हारी माया प्रथमे एक दन्त, द्वितीय मेघवर्ण, तृतीय गज करण, चतुर्थ लंबोधर, पंचमे विघ्नहरण, षष्टमे धूम्ररूप, सप्तमे विनायक, अष्टमे भालचंद्र, नवमे शील संतोष, दशमे हस्तमुख, एकादशे द्वारपाल, द्वादशे वरदायक एते गणपत गणेश नाम द्वादश सम्पूर्ण भया । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश ।

Saturday, 26 September 2020

योग वाणी

 गुरू माने मिलया पूरा भेद बतायाः मूल कमल पे गणपती बोले खटदल ब्रहम बिकाना ।अष्ट कमल पर विष्णु रूप है ,द्वादश शिव का थाना ।छे मूल पर त्रिकुटी रूप है झिलमिल जोत प्रकाशा ।पाँचो उलट अमीरस बरसे जहाँ हँस करे असनाना ।सात मूल पे सूरज दरसे वहां कोटि भानू प्रकाशा । अष्ट मूल पर चंदा रूप है ,वहां अमी का वासा ।नव मूल पर तारा दरसे वहीं शक्ति का वासा ।दस मूल पर ब्रहम का वासा जहां कोटि सूरज प्रकाशा ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले उलट पलट मिल जाना ।।  ः वाणी ः तीरथ जाऊँ करूँ न तपस्या ,ना कोई देवल ध्याऊंगो । घडया घाट कदे न पूजूं ,अनघड़ देव मनाऊंगो । याद करो जद आऊं सतगुरू ,हुकम करो जद जाऊंग़ो ।हरिरस प्रेम प्याला पीकर,लाल मगन हो जाऊंगो ।मकड़ी मंदिर चढि सत धारो,ऐसी निवण लगाऊगो ।दसवे देस इकीसवे बिरमांड ,वहां पूग्या पद पाऊगो । गंगा जमना नहीं नहाऊं ,ना कोई तीरथ जाऊंगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई ,घर ही गंगा नहाऊगो ।जडी खाऊं ना बूटी खाऊं ना कोई वेद बुलाऊंगो ।नाडी का वेद सतगुरू देवा,वाने नबज दिखाऊंगो ।बस्ती बसूं न वन मे जाऊं ,भूखा रेण नपाऊगो ।इसी फकीरी गुरू फरमाई, रिदि सिद्वी ले घर आऊंगो।इगंला ना साजूं पिगंला न साजूं,त्रिकुटी ध्यान लगाऊगो ।शरण मछंदर गोरक्ष बोले, जोत मे जोत मिलाऊंगो।।

!! गोरखनाथ का प्रिय जंजीरा मंत्र !!

मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए नाना प्रकार की सिद्धियाँ की एवं उस पर विजय प्राप्त करने के बाद स्वार्थ-परमार्थ दोनों कार्य भी किए। किसी ने भैरव को, किसी ने दुर्गा को, किसी ने हनुमान जी को इस प्रकार सभी ने अपने-अपने हिसाब से देवताओं की आराधना कर सिद्ध किया और अपने कार्य को किया !!

यहाँ पर गुरु गोरखनाथ को प्रसन्न करने के लिए मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं जो 21 दिन में सिद्ध होता है। साथ में गोरखनाथ जी का आशीर्वाद भी मिलता है इसे सिर्फ परोपकार के लिए ही कार्य में लें अपने स्वार्थ के लिए नहीं !!

मंत्र (जंजीरा)                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            !! ऊँ गुरुजी मैं सरभंगी सबका संगी, दूध-माँस का इकरंगी, अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में पड़झाँई, दर से वहाँ दर से मेरा साईं, मूल चक्र सरभंग का आसन, कुण सरभंग से न्यारा है, वाहि मेरा श्याम विराजे ब्रह्म तंत्र ते न्यारा है, औघड़ का चेला, फिरू अकेला, कभी न शीश नवाऊँगा, पत्र पूर पत्रंतर पूरूँ, ना कोई भ्राँत ‍लाऊँगा, अजर अमर का गोला गेरूँ पर्वत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डंका करो सनेवा, राखो पूर्ण वरसता मेवा, जोगी जुण से है न्यारा, जुंग से कुदरत है न्यारी, सिद्धाँ की मूँछयाँ पकड़ो, गाड़ देवो धरणी माँही बावन भैरूँ, चौसठ जोगन, उल्टा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटकें नाड़ा, न कोई माँगे हजरता भाड़ा मैं ‍भटियारी आग लगा दूँ, चोरी-चकारी बीज बारी सात रांड दासी म्हाँरी बाना, धरी कर उपकारी कर उपकार चलावूँगा, सीवो, दावो, ताप तेजरो, तोडू तीजी ताली खड चक्र जड़धूँ ताला कदई न निकसे गोरखवाला, डाकिणी, शाकिनी, भूलां, जांका, करस्यूं जूता, राजा, पकडूँ, डाकम करदूँ मुँह काला, नौ गज पाछा ढेलूँगा, कुँए पर चादर डालूँ, आसन घालूँ गहरा, मड़, मसाणा, धूणो धुकाऊँ नगर बुलाऊँ डेरा, ये सरभंग का देह, आप ही कर्ता, आप ही देह, सरभंग का जप संपूर्ण सही संत की गद्दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही !!

!! सिद्ध करने की विधि एवं प्रयोग !!

किसी भी एकांत स्थान पर धुनी जलाएँ। उसमें एक लोहे का चिमटा गाड़ दें। नित्य प्रति धुनी में एक रोटी पकाएँ और वह रोटी किसी काले कुत्ते को खिला दें। (रोटी कुत्ते को देने के ‍पहले चिमटे पर चढ़ाएँ।) प्रतिदिन आसन पर बैठकर 21 बार जंजीरा (मंत्र) का विधिपूर्वक पाठ करें। 21 दिन में सिद्ध हो जाएगा।
किसी भी प्रकार का ज्वर हो, तीन काली मिर्च को सात बार मंत्र पढ़कर रोगी को खिला दें, ज्वर समाप्त हो जाएगा।
भूत-प्रेत यक्ष, डाकिनी, शाकिनी नजर एवं टोने-टोटके किसी भी प्रकार का रोगी हो, मंत्र (जंजीरा) सात बार पढ़कर झाड़ दें। रोगी ठीक हो जाएगा।
यदि आप किसी भी कार्य से जा रहे हो, जाने से पूर्व मंत्र को पढ़कर हथेली पर फूँक मार कर उस हथेली को पूरे चेहरे पर घुमा लें फिर कार्य से जाएँ, आपका कार्य सिद्ध होगा और आपको सफलता जरूर मिलेगी।
आत्मा एवं परमात्मा का मिलन आपके कार्य सिद्ध करेंगे !!

यंत्र पूजा विधि : –

भगवान शिव के इस तांत्रिक यंत्र/Shiv Tantrik Yantra को आप ताम्रपत्र पर खुदवा या भोजपत्र पर बना सकते है | भोजपत्र पर इस यन्त्र को बनाने के लिए अष्टगंधा की स्याही का ही प्रयोग करें |

सुबह-सुबह प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर सफ़ेद कपड़े धारण करें | अब पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान भोलेनाथ की फोटो या मूर्ती की स्थापना करें | अब शिव तांत्रिक यंत्र को चौकी पर रखे | घी का दीपक व धुप आदि लगाये | अब इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान भोलेनाथ की फोटो और यंत्र पर पुष्प अर्पित करें | मंत्र इस प्रकार है :

कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारम्।
सदा वसन्तं हृदयारबिन्दे, भवं भवानि सहितं नमामि॥

अब भगवान शिव के तांत्रिक यंत्र को अक्षत(चावल), सफ़ेद आक के पुष्प और फल व मिठाई आदि अर्पित करें | एक लौटे में जल भरकर रखे | अब जल के कुछ छींटे यंत्र पर लगाये |

इसके उपरांत आप भगवान शिव का स्मरण करते हुए शिव चालीसा का पाठ करें | पाठ समाप्त होने पर – ” ॐ नमः शिवाय ” मंत्र की 3 माला का जप करें | मंत्र जप में जल्दी न करें | सहजता के साथ व लयबद्धता के साथ मंत्र जप करें | अंत में भगवान शिव की आरती करें और प्रणाम करते हुए आसन से खड़े हो जाये | अब अपने माता-पिता से आशीर्वाद ग्रहण करें |
शिव तांत्रिक यंत्र को सिद्ध करने की विधि : –
कोई भी यंत्र हो वह पूर्ण रूप से अपना प्रभाव तभी दिखाता है जब उसे विधिवत सिद्ध किया जाये | भगवान शिव के इस तांत्रिक यंत्र/(Shiv Tantrik Yantra) को भी सिद्ध करने के उपरांत ही पूजा स्थल पर स्थापित किया जाना चाहिए |

शिव तांत्रिक यंत्र को इस प्रकार से सिद्ध करें : – उपरोक्त यंत्र पूजा विधि के अनुसार ही यंत्र पूजा करें | यंत्र पूजा से पहले यंत्र को पंचामृत(दूध ,दही,घी,शहद और गंगाजल के मिश्रण) से स्नान कराये | फिर गंगाजल से स्नान कराये | इसके बाद ऊपर दी गयी विधि अनुसार ही यंत्र पूजा करें | यन्त्र पूजा के पश्चात् हाथ में  जल लेकर संकल्प ले | तत्पश्चात  – ‘ॐ नमः शिवाय ‘ मंत्र के 5000 जप करें |मंत्र जप के पश्चात् हवन करें | हवन में अधिक से अधिक आहुतियाँ ॐ नमः शिवाय मंत्र की दे | हवन सम्पूर्ण होने के उपरांत यन्त्र को हवन के ऊपर से 21 बार घुमाए और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करें | हवन की विभूति से यंत्र को तिलक करें | अब इस सिद्ध तांत्रिक यंत्र को अपने पूजा स्थल पर स्थापित करें

 

पितृ-आकर्षण मन्त्र

 कभी-कभी पितृ-पीड़ा से मनुष्य का जीवन दुःख-मय हो जाता है। निर्धारित कार्यों में बाधा, विफलता की प्राप्ति होती है। आकस्मिक दुर्घटनाएँ घटती है। पूरा कुटुम्ब दुःखी रहता है। ऐसी दशा में निम्नलिखित ‘प्रयोग’ करे। यह ‘प्रयोग’ निर्दोष है। पितृ-पीड़ा हो या न हो, सभी प्रकार की बाधाएँ नष्ट हो जाती है और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। यदि यह ज्ञात हो कि किस पितृ की पीड़ा है, तो उस पितृ का मन-ही-मन आवाहन-पूजन कर निम्न ‘प्रयोग’ करे। पितृ-पीड़ा दूर हो जाएगी।

“ॐ नमो कामद काली कामाक्षा देवी। तेरे सुमरे, बेड़ा पार। पढ़ि-पढ़ि मारूँ, गिन-गिन फूल। जाहि बुलाई, सोई आये। हाँक मार हनुमान बीर, पकड़ ला जल्दी। दुहाई तोय, सीता सती, अञ्जनी माता की, मेरा मन्त्र साँचा, पिण्ड काँचा। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का राम-दूत परम-वीर श्री हनुमान जी के मन्दिर में एकान्त में, प्रतिदिन १ हजार जप ४१ दिन तक करें। यन-नियम का पालन करें। पहले दिन पूजन करें। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जाएगा। ४२वें दिन, श्री हनुमानजी के उसी मन्दिर में २१ गुलाब के फूल लेकर जाए। हनुमानजी के सामने बैठकर उक्त मन्त्र से २१ फूलों को अभिमन्त्रित करें और मन-ही-मन संकल्प करें-“ज्ञात-अज्ञात पितृ-देवता मुझे दर्शन दें या आशीष दें।” 
इसके बाद सभी फूल, सभी दिशाओं-विदिशाओं में फेंक दें। फिर थोड़ी देर मन्दिर में रुके रहें, ध्यान से बैठे रहें। फिर गृह चले जायें। एक सप्ताह के अन्दर उचित निर्देश मिल जायेगा .

गुरु गोरक्षनाथ पंचमात्रा

 ।। ॐ शिव गोरक्ष योगी ।।

            


सतनमो आदेश । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश । 
ॐ गुरु जी । 

कहो रे बालक किस मूण्डा किस मुण्डाया किसका भेजा नगरी आया । 

सतगुरु मुण्डा लेख मुण्डाया, गुरुं का भेजा नगरी आया । चेताऊ नगरी तारू गांव ,अलख पुरुष का सिमरू नाम । 

गुरु अविनाशी खेल रचाया, अगम निगम का पंथ बनाया । ज्ञान की गोदड़ी क्षमा की टोपी , जत का आडंबर - शील लंगोट । 

आकार खिन्था - निराश झोली , युक्ति का टोप - गुरु मुख की बोली । धर्म का चोला सत की सेली , मरी जात मेखले गले मे सेली ।

 ध्यान का बटुवा - निरत का सूईदान - ब्रह्म अचवा पहिने सुजान । बहुरंगी मोरदल - निर्लेप दृष्टि निर्भिजन डोरा न कोई सृष्टि । 

जाप जपोला , शिव सा दानी । सिंगी शब्द गुरु मुख को बानी । संतोष सूत - विवेक धागा , अनेक टिल्ली तहाँ जा लागा ।

 शर्म की मुद्रा - शिव विभूता , हर वक्त मृगयानी ले पहनी गुरु पूता ।

 सूरत की सुई - सतगुरु सेवे जो ले राखे निर्भय रहे , सेली कहे शील को राख - हर्ष शोक मन मे नही भाख । 

चोरी यारी निद्रा परि हरे । काम क्रोध मल सूत्र न धरे । इतना गोरक्षनाथ जी पंचमात्रा जाप सम्पूर्ण भया ।

 श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश आदेश ।

                            ।। इति शुभम् ।।

Wednesday, 16 September 2020

अघोर गायत्री मंत्र

 सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी मैं अघोरी सर्वरंगी।गुरु हमारे बहुरंगी।भूत प्रेत वैताल मेंरे संगी।डाकिनी शाकिनी अंग अंग में लगी।भूतनी प्रेतनी हाथ जोड़ पांव में पड़ी।चुड़ैल पिशाचिनी सेंवा में हाजिर हजूर खड़ी। अघोरी अघोरी भाई भाई।अघोरी साधो मढ़ी मसान के मांई।अघोरी की संगत करना।जिस संगत से पार उतरना।मढ़ी मसान से अघोरी आया।खुर खुर खावें।लुदर मांगे।आस पल के संग न जावें।गगन मण्डल में उनकी फेरी।काली नागिन उसकी चेली।उस नागिन पर अघोरी की छायां।अघोरी ने छायां से अघोर उपाया।अघोर से अघोरी हो कर ब्रम्ह चेताया।सेली सिंगी बटुआ लाया।बटुवें में काली नागिन।काली नागिन लाकर तलें बिछाई।तब अघोरी ने जुगत कमाई।रक्त गुलासी।शुद्ध गुलासी।केतु केतु हेरो भाई।ना किसी के भेलें जावें।ना किसी के भेलें खावें।मढ़ी मसान मेरा वासा।मैं छोड़ी कुल की आशा।अघोर अघोर महाअघोर।आदि शक्ति का भग वो भी अघोर।गौरी नन्द गणेश के शुभ लाभ वो भी अघोर।काली पुत्र काल भैरव का कपाल वो भी अघोर।अंजनी सुत हनुमान कि ललकार वो भी अघोर।ब्रम्हा जी के चार वेद छहः शास्त्र वो भी अघोर।वासुदेव श्री कृष्ण के छप्पन करोड़ यादव वो भी अघोर।देवाधिदेव महादेव के ग्यारह रुद्र वो भी अघोर।गौरां पार्वती माई की दस महाविद्या वो भी अघोर।कामदेव की रति वो भी अघोर।ब्रम्हऋषि वाल्मिकी जी की रामायण वो भी अघोर।महऋषि वेदव्यास जी की श्रीमद्भागवत गीता वो भी अघोर।गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस वो भी अघोर।माता पिता वो भी अघोर।गुरु शिष्य वो भी अघोर।मढ़ी मसान की राख वो भी अघोर।मुआ मुर्दा की ख़ाक वो भी अघोर।सदाशिव गुरू गोरक्ष नाथ जी ने अघोर गायत्री मंत्र सिद्ध गहनी नाथ जी को कान में सुनाया।अज्जर वज्जर किन्हें हाड़ चाम ,अमर किन्हीं सिद्ध गहनी नाथ जी की काया।आवें नहीं जावें नहीं।मरें नहीं जन्में नहीं।काल कभी नहीं खावें।मरें नहीं कभी घट पिण्ड ,सड़े नहीं नाद बिन्द की काया।शिव शक्ति ने अण्ड फोड़ ब्रम्हाण्ड रचाया।ले सिन्दूर लिलाट चढ़ाया।सिन्दूर सिन्दूर महासिन्दूर।महा सिन्दूर कहाँ से आया।कैलाश पर्वत से आया।कौन कौन ल्याया।गौरी नंद गणेश काली पुत्र काल भैरव अंजनी सुत हनुमान ल्याया।कौन कारण ल्याये।माता आदि शक्ति के कारण ल्याये।तेल तेल महातेल।देंखु रे सिन्दूर तेरी शक्ति का खेल।तेल में लेऊँ सिन्दूर मिलाय।बीच लिलाट बिंदी लेऊँ लगाय।भूत प्रेत बेरी दुश्मन के लगाऊँ वज्र शैल।एक सेवा से हनुमन्त ध्याऊँ।पकड़ भुजा काल भैरव की ल्याऊं।हथेली तो हनुमान बसे बिंदी बसे दुर्गा माई काल भैरव बसे कपाल।विभुति उलेटू विभुति पलेटु।विभुति का करूँ शिंणगार।आप लगायें धरती के मै लगाऊँ संसार।अवधूत दत्तात्रेय नाथ जी बोलें बंम बंम ओउमकार।माया मछिन्द्र नाथ जी ने ओउमकार का ध्यान लगाया।ओउमकार में अलख निरंजन निराकार।अलख निरंजन निराकार में पारब्रम्ह।पारब्रम्ह में कामधेनु गाय।कामधेनु गाय से उत्पन्न भई माता अघोर गायत्री।अघोर गायत्री अज़रा जरें।काट्या घाव भरें।अमिया पीवें।अभय मण्डल में रहन्ती।असँख्य रूप धरन्ती।साधु संतों को तारन्ती।अभेद कवच भेदन्ती।छल कपट छेदन्ती।लख चौरासी जिया जून से टालन्ती।अपने ग्वाल बाल को पालन्ती।इंद्री का श्राप टालन्ती।वैतरणी नदी से पार उतारन्ती।अघोर गायत्री माई सत्य सागरी।ओउम तरी।सोहंम तरी।रेवन्तरी।धावन्तरि।अजरावन्ती।वजरावन्ती।वासु मुनि के वचना दुर्वासा ऋषि के लार पडन्ती।अट्ठारह भार वनस्पति चरन्ती।गोचरी।अगोचरी।खेचरी।भूचरी।चाचरी।।सुमेरू पर्वत पर बैठन्ती।हूँ हूँ कार करन्ती।पंचमुख पसारन्ती।गंगा यमुना सरस्वती में खेलन्ती।अजपा जाप जपन्ती।सात हत्या पाप उतारन्ती।अघोर गायत्री अनहद में गाजे।काल पुरुष खाये तो गुरु गोरक्षनाथ लाजे।तार तार माता अघोर गायत्री तारिणी।सकल दुःख निवारिणी।बोलो बंम बंम।ॐ अघोराय विदमहे महाअघोराय धीमहि तन्नो अघोराय प्रचोदयात।इतना अघोर गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ राजा गोपीचन्द नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश                                                                                                                                                 ।आदेश।आदेश।

Sunday, 4 March 2018

जटा बांधने का गायत्री मंत्र

ॐ सत नमो आदेश गुरु जी को
ओमगुरुजी नीली पिली सिर जटा , जटा रमाई पाताल गंगा नाम शतानि शिवजटा ,अनन्त जटा भुजा पसर |नाम सहस्त्रेण विष्णु ब्रह्मा , भेद जटा का शिव शंकर पाया |अगन प्रजाले ब्रह्माजी बैठे , जटा अगन में होमे काया |तापी जटा तापी काया , तक महादेव बन्दा पाया  |उरम धुरम सिर  जटा ज्वाला ,सिर उनमन पलटे पारा |अह्नाद नाद बजे हमारा  ,सिद्ध नाथ श्री गोरखजी ने कहाया |शब्द का सुच्चा , गुरां का बन्दा . गुरुप्रसाद जटा जमाया |काम क्रोध त्यागे माया ,अक्षय योगी सबसे न्यारा |बिना मंत्र पढ़ जटा जमाया , सो योगी नरक समाया |मंत्र पढ़ जटा समाया , सो योगी जटा शिवपुरी में बासा |इतना जटा जप सम्पूर्ण भया |श्री नाथ गुरूजी को आदेश | आदेश | आदेश |

Tuesday, 17 October 2017

अघोर व अघोरी साधना

शैव संप्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। अघोरी की कल्पना की जाए तो श्मशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधु की तस्वीर जेहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है। अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी आपको ठग सकता है लेकिन अघोरियों की पहचान यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है और बड़ी बात यह कि तब ही संसार में दिखाई देते हैं जबकि वे पहले से नियुक्त श्मशान जा रहे हो या वहां से निकल रहे हों। दूसरा वे कुंभ में नजर आते हैं।

अघोरी को कुछ लोग ओघड़ भी कहते हैं। अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु समझा जाता है लेकिन अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। कहते हैं कि सरल बनना बड़ा ही कठिन होता है। सरल बनने के लिए ही अघोरी कठिन रास्ता अपनाते हैं। साधना पूर्ण होने के बाद अघोरी हमेशा- हमेशा के लिए हिमालय में लीन हो जाता है।

जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफन आदि से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है।

अघोर विद्या सबसे कठिन लेकिन तत्काल फलित होने वाली विद्या है। साधना के पूर्व मोह-माया का त्याग जरूरी है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाएं। सभी तरह के वैराग्य को प्राप्त करने के लिए ये साधु श्मशान में कुछ दिन गुजारने के बाद पुन: हिमालय या जंगल में चले जाते हैं।

अघोरी खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं नहीं करता। रोटी मिले तो रोटी खा लें, खीर मिले खीर खा लें, बकरा मिले तो बकरा और मानव शव मिले तो उससे भी परहेज नहीं। यह तो ठीक है अघोरी सड़ते पशु का मांस भी बिना किसी हिचकिचाहट के खा लेता है। अघोरी लोग गाय का मांस छोड़कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक।

घोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। अघोरी जानना चाहता है कि मौत क्या होती है और वैराग्य क्या होता है। आत्मा मरने के बाद कहां चली जाती है? क्या आत्मा से बात की जा सकती है? ऐसे ढेर सारे प्रश्न है जिसके कारण अघोरी श्मशान में वास करना पसंद करते हैं। मान्यता है कि श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं।

अघोरी मानते हैं कि जो लोग दुनियादारी और गलत कामों के लिए तंत्र साधना करते हैं अंत में उनका अहित ही होता है। श्मशान में तो शिव का वास है उनकी उपासना हमें मोक्ष की ओर ले जाती है।

अघोरी श्मशान में कौन-सी साधना करते हैं...अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना।

शव साधना : मान्यता है कि इस साधना को करने के बाद मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएं पूरी करता है

शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

भूत-पिशाचों से बचने के लिए क्या करते हैं अघोरी...

अघोरियों के पास भूतों से बचने के लिए एक खास मंत्र रहता है। साधना के पूर्व अघोरी अगरबत्ती, धूप लगाकर दीपदान करता है और फिर उस मंत्र को जपते हुए वह चिता के और अपने चारों ओर लकीर खींच देता है। फिर तुतई बजाना शुरू करता है और साधना शुरू हो जाती है। ऐसा करके अघोरी अन्य प्रेत-पिशाचों को चिता की आत्मा और खुद को अपनी साधना में विघ्न डालने से रोकता है।

क्यों जिद्दी और गुस्सैल होते हैं अघोरी...
अघोरियों के बारे में मान्यता है कि वे बड़े ही जिद्दी होते हैं। अगर किसी से कुछ मांगेंगे, तो लेकर ही जाएंगे। क्रोधित हो जाएंगे तो अपना तांडव दिखाएंगे या भला-बुरा कहकर उसे शाप देकर चले जाएंगे। एक अघोरी बाबा की आंखें लाल सुर्ख होती हैं लेकिन अघोरी की आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी ही शीतलता होती है।

अघोरी की वेशभूषा...
कफन के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे प्रतीक रूप में उसी तरह की माला पहनते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं ये साधु। ये साधु अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते है।

अघोरपंथ तांत्रिकों के तीर्थस्थल...
अघोरपंथ के लोग चार स्थानों पर ही श्मशान साधना करते हैं। चार स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं। यदि आपको पता चले कि इन स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर भी अघोरी साधना करते हैं तो यह कहना होगा कि वे अन्य श्मशान में साधना नहीं करते बल्कि यात्रा प्रवास के दौरान वे वहां विश्राम करने रुकते होंगे या फिर वे ढोंगी होंगे।

तीन प्रमुख स्थान :

1. तारापीठ का श्मशान : कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापीठ धाम की खासियत यहां का महाश्मशान है। वीरभूम की तारापीठ (शक्तिपीठ) अघोर तांत्रिकों का तीर्थ है। यहां आपको हजारों की संख्या में अघोर तांत्रिक मिल जाएंगे। तंत्र साधना के लिए जानी-मानी जगह है तारापीठ, जहां की आराधना पीठ के निकट स्थित श्मशान में हवन किए बगैर पूरी नहीं मानी जाती। कालीघाट को तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है।

कालीघाट में होती हैं अघोर तांत्रिक सिद्धियां

2. कामाख्या पीठ के श्मशान : कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। प्राचीनकाल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। कालिका पुराण तथा देवीपुराण में 'कामाख्या शक्तिपीठ' को सर्वोत्तम कहा गया है और यह भी तांत्रिकों का गढ़ है।

3. रजरप्पा का श्मशान : रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का स्थान है। रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है लेकिन जानकारों के अनुसार छिन्नमस्ता 10 महाविद्याओं में एक हैं। उनमें 5 तांत्रिक और 5 वैष्णवी हैं। तांत्रिक महाविद्याओं में कामरूप कामाख्या की षोडशी और तारापीठ की तारा के बाद इनका स्थान आता है।

4. चक्रतीर्थ का श्मशान : मध्यप्रदेश के उज्जैन में चक्रतीर्थ नामक स्थान और गढ़कालिका का स्थान तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। उज्जैन में काल भैरव और विक्रांत भैरव भी तांत्रिकों का मुख्य स्थान माना जाता है।

दस महा विद्या साबर गायत्री मंत्र

दश महाविद्या शाबर मन्त्र :
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सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा । वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा । यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या । यही ध्यान विष्णु की माया ! ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठ गोरक्ष योगी, देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश । सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई । राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई । कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा । यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार । हम नहीं जानत, अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि । दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया । हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई । कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई । तब सती ने शक्ति की खेल दिखायी, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति ।

प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली ।
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।। महाकाली ।।

ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।

द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी ।
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।। तारा ।।
ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्

तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।
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।। षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।।
ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं
हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।

चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
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।। भुवनेश्वरी ।।
ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
ह्रीं

पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी ।
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।। छिन्नमस्ता ।।
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।

षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।
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।। भैरवी ।।
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः

सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी
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।। धूमावती ।।
ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।

अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी ।
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।। बगलामुखी ।।
ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।

नवम ज्योति मातंगी प्रगटी ।
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।। मातंगी ।।
ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।

दसवीं ज्योति कमला प्रगटी ।
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।। कमला ।।
ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।

सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश ।।
शिव गोरक्ष कल्याण करे