Monday 16 June 2014

नव-नाथ-माला

'आदि-नाथ' महेश आकाश-रुप छाय रहे ।
'उदय-नाथ' पार्वती पृथ्वी-रुप भाए हैं ।
'सत्य-नाथ' ब्रह्मा जी जिनका है जल-रुप ।
वही तो कृपा कर सृष्टि को रचाए हैं ।
विष्णु 'सन्तोष-नाथ' तेज खाँडा खड्ग-स्वरुप ।
राज्पाट-अधिकारी वही तो कहाए हैं ।
अचल 'अचम्भेनाथ' जिनका है शेष-रुप ।
पृथ्वी का भार सब शीश पर उठाए हैं ।
गज-बली 'कन्थभ-नाथ' सिद्धि देता हार ।
हस्ति-रुपी घाड़ गण-पति कहलाए हैं ।
ज्ञान-पारखी चन्द्रमा-सिद्ध हैं 'चौरंगी-नाथ' ।
अठार भार वनस्पति में वही समाए हैं ।
माया-पति दादा-गुरु कृपालु 'मत्स्येन्द्र-नाथ' ।
सब ही को अन्न-धन-कपड़ा पुराए हैं ।
गुरु तो 'गोरक्ष-नाथ' स्वयं ज्योति-स्वरुप जो ।
विश्व भर योग-शक्ति उदार फैलाए हैं ।
बड़े हैं जो भाग्य-वन्त जिन योग प्राप्त किया ।
नव-नाथ 'नव-नाथ' गुरु-गण गाए हैं ।
नाथ ये त्रिलोक 'नव-नाथ' को नमन कर ।
नव-नाथ-नाम शुभ मेरे मन भाए हैं ।

।।दोहा।।
श्री 'नव-नाथ' को चुनऊँ, दीजिए शुभ आशीष ।
आप ही मम सर्वस्व हैं, आपहि हैं मम ईश ।।
करें कृपा मुझ दीन पर, करूँ सुयश गुण-गान ।
'नव-नाथ-माला' शुभ गुनूँ, कीजिए बुद्धि प्रदान ।।
जिसके पठन-श्रवण से, मिटे त्रिविध भव-ताप ।
अचल मोक्ष-पद-पावहीं, जपिहैं जो चित लाय ।।

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