Thursday, 27 February 2025


 

कालभैरव

 ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !

ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने
का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,.
सोने का घंटा, सोने की संकुली.----

ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे
का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,
तामे का घंटा, तामे की संकुली---

ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे
का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे
का घंटा, रूपे की संकुली ----

ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,
तामे का किवार,
अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,
अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली----

OM

 सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश .

ॐ गुरु जी.....ॐ कार नाद से उत्पति माया .आदि नाथ संग पार्वती माता
.सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द काजाने बिरला
! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया .पर जोग निंद्रा भई माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया .ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा .गर्भ ज्ञान शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !सत गुरु ज्ञान को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा देखो सिद्धों यही ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कर सुनाया !

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्

 श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।

मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।

OM

 सतनमो आदेश।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।ओउम काल,सोहंम काल।काल और महाकाल।अलील मध्ये अज्जर काल।वज्जर काल अनभय काल निर्भय काल।ये पांच काल हमारे पास।अमर काल भँवर काल ज्योति काल सरजीवन काल ये पांच काल हमारे सतगुरू।हमारे कारण दुनियां मरे जरें।ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना करें।विष्णु जी सृष्टि का पालन करें।महेश सृष्टि का संहार करें।नवखण्ड पृथ्वी को शेषनाग सिर पर धारण करें।सात वार बारह राशि पन्द्रह तिथि सत्ताईस नक्षत्र घटे बढ़े चलें।काल परमहँस गायत्री मंत्र को कौन जपन्ते।शिव जपन्ते।ओउम तो कौन।सोहंम तो कौन।तत्व तो कौन।ओउम तो शिव सोहंम तो शक्ति।परमहंस तत्व।ओउम हर हर हर महादेव।बंम बंम बंम।दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मुआ मुर्दा सरजीवन किया।अलील की काया।अलील की माया।अलील पुरुष ने घट पिण्ड को आन चेताया।गले नहीं हाड़ चाम की कोठी स्थिर रहें नाद बिन्द की काया।माया मछिन्द्रनाथ जी ने काल परमहँसास्त्र चलाया।किलकारी मार कालिका माई ने काल को भगाया।काली कंकाली महाकाली।कृष्ण वर्णी।शव वाहिनी।रुद्रदेवता की पोषणी।हाथ खड़ग खप्पर धारिणी।गले मुण्डमाला।हंसमुखी।जिव्हा ज्वाला।दन्तकाली।मधमांसकारी चौपटा मढ़ी मसान की रानी।मांस खायें।मध पी पीवें।रिद्धि सिद्धि लियाओ भस्मन्ती माई।भस्मन्ती माई जहाँ पर पाई।तहाँ रमाई।सत्य की नाती।धर्म की बेटी।इन्द्र की साली।अचलनाथ की चेली।काल की महा काली।नागों की नागिन।जोग को जोगिन।भोग की भोगिन।मन माने तो संग रमाई।नहीं तो मढ़ी मसान में फिरे अकेली।बावन भैरव चौसठ योगिनी छप्पन कलुवा।बोल बंम बंम काली माई की दुहाई।घोर काली अघोर काली।अज्जर काली वज्जर काली।भख जून निर्भय काली।अला बला भख।पापी पाखण्डी को भख।जति सती को रख।ओ काली माई तुम बाला ना वृद्धा।देव ना दानव।नर ना नारी।देवी जी तुम तो हो स्वंय परब्रम्ह काली।प्रथमें काली।द्वितीय कालरात्रि।तृतीय कपालिनी।चतुर्थे काम सुंदरी।पंचमी कामिनी।षष्टमें विरूपाक्षी।सप्तमे उग्रा।अष्टमे घोर रूपा।नवमे नरसिहीं दसमें वराही एकादशे रुद्रा द्वादशे डाकिनी।कालिका देवी के द्वादश नाम ह्रदय में ध्याऊँ।दो हाथ जोड़ तैतीस कोटि देवी देवताओं को जगाऊँ।कहे गुरु गोरक्ष नाथ सुनो नवनाथ चौरासी सिद्धो काल परमहँस गायत्री मंत्र का सुमिरण करें।नाद बिन्द जांके घट जरें।तांकि सेवा ऋद्धि सिद्धि करें।तीन चुल्लू पानी के भरें।निर्भय जोगी जंगल फिरे ।मढ़ी मसान फिरे, फिरे सारे ब्रम्हाण्ड।अनहद नाद घूंघर बोल।गुरु शब्द गुरु ज्ञान।भरे संसार झरें संसार।फिरे योगी अनभय काल।कालिका माई हमारी तुमारी माई।हमको तुमको छोड़ और को ले जाई।तो नवखण्ड पृथ्वी माई में हल चल मच जाई।ॐ कालाय विदमहे महाकालाय धीमहि तन्नो काल परमहँसाय प्रचोदयात।इतना काल परमहँस गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्रयम्बक क्षेत्र कौलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ सदाशिव शम्भुजती गुरु गोरक्ष नाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध बारह पंथी अनन्त कोटि सिद्धो को पढ़ कथ कर सुनाया।श्री नाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश

OM

 ॐ गुरूजी अलख पुरुष ने बांधी काया बेगम डोर से हंसा आया | नाभी कमल से संसार रचाया, ह्रदय कमल से जीव का वासा कुन्ज कमल में निरंजन निराई, त्रिकुट महल में फिरी दुहाई |ॐ गुरूजी शबद के हम शिष्य हैं सोहं हमारा नाम, प्राण हमारा इष्ट है, काया हमारा गाँव |

कमंडल मंत्र

 सत नमो आदेश गुरुजी को प्रदेश ॐ गुरुजी ॐ कार निरा निरंजन घट तत्सार अनन्त घट उनमन मन हाड़ चाम नीर तन पलटन्त काया उबटन्त नीर पडेन डि पीवे नीर कम जल घट हुआ निर्माण अमीरस पोयो पियो कमण्डल नोर सिद्ध सा मन हुद्याथिर | घट घट में सब सृष्टी समाई । त्रिवणी संग चन्दा रवि घट पिण्डे दीप ज्योती जति गोरक्ष घट-घट वाप देवी देवता तिरथ यात्रा साथ कमण्डल अमीरस धारा । घट का कोई जाने भेव आप कर्ता आप देव । इतना कमा मंत्र सम्पूर्ण भया । श्री नाथजी गुरुजी को आदेश-आदेश ।

-जय श्री आदि नाथ जी- ज्ञान चालीस


सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश . ॐ गुरु जी . ॐकार नाद से उत्पति माया .
आदि नाथ संग पार्वती माता . सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द का
जाने बिरला . 1!! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया . पर जोग निंद्रा भई
माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया . ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !!2!!
क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा . गर्भ ज्ञान
शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !!3!! सत गुरु ज्ञान
को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा ! देखो सिद्धों यही
ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कथ कर सुनाया !!4!!
आदि नाथ पारब्रह्म शिव शक्ति प्रथम आदि उत्पति माया ! ॐकार रुप नाद बिन्द
कहाया ,बिन्दु रुप बोलिए काया !!5!! उदै भइला सूर अस्त भईला चंदा दूहू
बीच कल्पना काल का फंदा उदै अस्त एक कर बासा तब जानिबा जोगींद्र जीवन आसा
! बारह कला रवि सोलह कला शशि ! चारी कला गुरुदेव निरंतर बसी !!6!! हीन पद
सुराया लागा डँसा ! तन का तेज ले उड़िया हँसा ! हँस का तेज ले थिर रहे
काया ! काल का भेद ले कहो गुरु राया !!7!! द्वै पंख छेदी एक है रहना ,चंद
सूर्य दोउ सम कर गहना ! ऊंच भै ऊपरै मध्य निरंतरे ता तल भाट जराई !!8!!
शीजी अमिरस कंचन हुआ यही विधि पिंजरे बनवै सुआ ! उपजत दीसन्त निपजत नाहीं
! आवरण नास्ति संसार माही !!9!! बूझले सत्गुरु बुद्धि भेद सिद्ध संकेत
,परचा जानी लगाबो हेत ! उरम धूरम ज्योति ज्वाला ,नौ कोटि खिड़की पूर ले
ताला !!10!! ताला ना टूट खिड़की न भांजे ,पिंड पड़े तो सत्गुरु लाजे ! भरे
सागर धुनि धूसर कूची तहां सकल विध है सोई सूची !!11!! यही विधि अतीत योगी
होई ,अमर पद ध्याबत बिरला कोई ! सहज मरे अष्ट पग धरना ,ज्ञान खड्ग ले काल
सण्हर्णा !!12!! अमर कोट काया एक कोट मध्ये ,जीतले यम पुरी राखि ले कंधे
! आत्मा झुझजती गोरखनाथ किया ! संसार विनाशा आपन जिया !!13!! झूझँत सुरा
बूझन्त पूरा अमर पद ध्याबँत गुरु ज्ञान वँका !दल को मारि जंजाल को जीतले
,निर्भय होई मिटिले मन की शंका ! अझूझि झूझि ले पैस दरिया ! मूल बिन वृष
अमिरस भरिया !!14!! तन मन कर ले शिव पूर मेला ,ज्ञान गुरु जोगी संसार
चेला ! मन राई चंचल थान स्थित नाहीं ! बाँधी ले पंचभूत आत्मा माही ! अलष
अकथ चछुबिन सूझिया ! सिद्ध का मार्ग साध के बूझिया !!15!! परख बिन गुरु
करे युगत बिन वहि मरे ,विचार उपरांति कछु ज्ञान नाहीं ! भ्रमि भूलें ते
वहि चले पंडिता ,उतरे पार ते फिरी समाहि !!16!! शब्द की परखा नहीँ सबद
हुआ ,ज्ञान का पारिखा जीबता मुंआ ! रहती करनी मुखे प्रकाश ,नासिका जानत
पहुप की बास !!17!! उलटी यंत्र धरे शिखर -आसन करे कोटि सर छूट घाव नाहीं
! सिलहट मध्ये काबरु जीतले ,निर्मल धूनी गगना माही !!18!! मन की भ्रमना
तब छूटते होई योगिँद्रा ,जब बिचारँत निहशबद की वाणी ! नैन कै दाता सार
धरि पीसीबा तब योग पद दुर्लभ सत्य कर जानी !!19!! उलटी गँगा ऊपर चले धरान
ऊपर ,मिले नीर में पैस्सी करि अग्नि जाले ! घटहि में पै शिखर कूप पानी
भरे ,तब पई परिपुरुशा आप उजाले !ज्ञान के के प्रगटे श्री शम्भुनाथ पाया
,अकल अकथ जती गोरखनाथ ध्याया !!20!! संसार में भ्रमिया सर्व भ्रम सोई
,निज पद पीबता बिनस्या ना कोई !बजरंग कोटरि पर दल पूरा ! पंच मुंआ सब जग
पहुँचा स सुरा !!21!! मन सो झूझना खाँड़ा न लागे शून्य गढ़ रम रहे तो दीप
धूनी जागे ! धरणी ना सोखे अग्नि न खाई ,वैली का रस ले भौंरा न जाई !
!22!! कथनी कथि हो पंडित रहनी न पाई ! आचार के बँधे मनसा गमाई ! कथत श्री
शंभूनाथ सुनो नर लोई भ्रम में भूला सो बहुरा न कोई !!23!! भूल्या सो
भूल्या बहुरि चेतना ,संसार के लोहे आपा न रेतना ! भेष तज भ्रम तज राखी
सत्य सोई ,तत बिचारता देवता होई !!24!! आपा सोँधो ब्रह्म निरोधि सहज पलटी
जोती ! काया के भीतर मणि माणिक निपजे तहां धुनि धुनि बरसें मोती !!25!!
अरध उरध सम्पुश्टि करीजे !शंखनि नाल अमीरस पीजे ! अखंड मण्डल तहां नाद
मेरी ले ,हरि आसन तहां भक्त करीले !!26!! आलेख मन्दिर तहां शिव शक्ति
निबासा ,सहज शून्य भया प्रकासा ! तहां चंद बिन चाँदनी अग्नि बिन उजाला !
ए तन भेद अंत वृद्ध वाला !!27!! करताज तजी हूँ आसक्त hu हूँ न जाई ,मन
मृग राखिले वाड़ी न पाई ! आकाश वाड़ी पाताल कुआँ भरी भरी सीचता जो सिद्ध
huaaहूआ !!28!! अवधू अमर कोटकाया आलेख दरवाजा ! ज्ञानी gadगढ़ आसन प्राण
भयो राजा !!29!! अवधू फेरी ले तो तत सार बुद्धि सांच ! नही toतौ लोहा
गडिले तो कंचन नहीँ toतो काँच !!30!! अवधू सिद्धा पाया साधक पाया ते
ऊतरिया पार कथँत जती गोरखनाथ चेते न जानत विचार ते जल भए अंगार !!31!!
अवधू ऐसा नगर हमारा तिहा जीव आवो ऊजु द्वार !अरध उरध बजार मण्डियां है
गौरष कहें विचार !!32!! हरि प्राण पातिसाह विचार काजी !पंच तत ते उजहदार
,मन पवन होऊं हस्ती घोड़ा ,गिनाँते आंखै भंडार !!33!! काया हमारी शहर
बोलिये मन बोलिये हज दार ! चेतन पहरे कोतवाल बोलिये ,तो चोर न झांकें
द्वार !!34!! तीनसौ साठ चीरा gadगढ़ रचीले सोलह खनिले खाई !नव दरवाजा
प्रगट डीसे दसवां लखा न जाई !!35!! अठारह भार कोट कन्ठजरा लाईले बहत्तर
कोठरी निपाई ! नव सत्र ऊपरे जंतर फिरे ,तब गाया गढ़ लिया नहीँ जाई !!36!!
अनहद घड़ी घड़ियाल बजाइले ,परम ज्योति दुई दीपक लाई ! काम क्रोध दोई गरदन
मारिले ,ऐसी अदली पात शाही बाबे आदम चलाई !!37!! तहां सत्य बीबी संतोष
साहीजादा सीमा भक्ति द्वै दाई ! आदि नाथ नाती मत्स्येन्द्र पूता काया
नगरी गोरख बसाई !!38!! ऐसा उपदेश दिखै श्री गोरख राया , जिनी जगचतुर वरन
राह लाया पढ़ले ससंबेद करिले विधि ज़षेद !जानिले भेदान भेद पूरिले आशा
अमेद ,विषमी साधे मंसारी संझाया पंचों बखत सार ! रहिबा दसवें द्वारी
सैइबा पद निराकार !!39!! जप ले अजपा जाप ! विचार लेआपो आप ,छुटला सब
बियाप ! लिपे नाहीं तहां पुन्य पाप ! अहो निष समो ध्यान ! निरंतर रमे
बा राम ,कथे गोरखनाथ जी ज्ञान ; पाईला परम निर्धान !!40!! श्री नाथ जी को
आदेश !!!

भैरव

 सत नमो आदेश गुरु को आदेश ॐ गुरु जी, चण्डी-चण्डी तो प्रचण्डी अलावला फिरे नव-खण्डी । तीर बाँधू, तलवार बाँधू, बीस कोस पर बाँधू वीर चक्र ऊपर चक्र चले, भैरो बली के आगे धरे, छल चले, बल चले, तब जानवा काल-भैरों/ तेरा रूप । कौन भैंरों ? आदि भैरो, युगादि भैरो, त्रिकाल भैरों, कामरु देश रोला मचावे, जिस माता का दूध पिया, सो माता की रक्षा करना, अवधूत खप्पर में खाय । मसान में लेटे, काल-भैरों की पूजा कौन मेटे ? राजा मेटे राज-पाट से जाय योगी मेटे, योग-ध्यान से जाय, प्रजा मेटे । दूध-पूत से जाय, लेना भैरों, लौंग सुपारी, कड़वा प्याला, भेंट तुम्हारी । हाथ काती मोढ़े मढ़ा, जहाँ सिमरूँ तहाँ हाजिर खड़ा । श्री नाथ जी, गुरु जी - आदेश - आदेश ॥

भैरब सिद्धि अघोरी मंत्र :

ॐ नमो काल कपाल महाकाल भैरब फिरे नबखण्ड धरती कामरू
देश की काली बिद्या, चलाबे अघोरी, खोपडी में खाये मसाण में
लोट चेते प्रचण्ड धूणा, लगाबे ध्यान तेरा, मांस मदिरा भोग धरे,
भूत भैरब, काल, भैरब, भैरू अघोर, तेरी शक्ति अपरम्परा तेरी
कोई जाने ना सार, तूही आदि भैरब अनादि भैरब भैरु का चेला
ध्यानी ज्ञानी जब भी तेरा ध्यान लगाबें पाबे निकट सदा तुही रख्या
करे कृपालू हम अघोरी का चेला है मरघट बाला अघोर भैरू मुझ
पर दया करों दो मुझे शक्ति, भक्ति, पूजूं मैं अमाबस्या की रात
देऊं मद की धार, मेरो इछित कारज पूर्ण कराबो न करो न
कराबो तो काली कंकाली खपडबाली की आण, कामरू
कामाख्या माई की। फिरे आगना, सारा अघोरियों की आण अब
भी ना करें तो जाये संत तेरा फिर भी न करें तो गंगा यमुना उल्टी
बहे। चल मसाण बाला काल भेरू करके श्वान की सबारी,
जोगण साथ लिये चलो, मेरो कारज करके आबे तो जानबा
काला भेरू कामरू कामाख्या माई का बेटा काल ,नाथजी का
मंत्र कभी न जाबें झूठा, तेरी शक्ति  नाथ की शक्ति

श्वद सांचा पिण्ड काचा गुरु का बचन जुग जुग सांचा।। 

भैरों

 सत् नमो आदेश गुरु जी को आदेश । ॐ गुरु जी । तुम भैरों काली का पूत सदा रहे मतवाला, चढ़े तेल - सिंदूर / गल फूलों की माला, जिस किसी पर संकट पड़े, जो सुमिरे तुम्हें उसकी रक्षा करें, तुम हो रक्ष-पालं । भरी कटोरी तेल की, धन्य तुम्हारा प्रताप, काल-भैरो अकाल-भैरों। लाल- भैरों, जल-भैरों, थल- भैरों। बाल-भैरों, आकाश- भैरो, क्षेत्रपाल भैरो, सदा रहो कृपाल भैरो चोला जाप सम्पूर्ण भया, नाथ जी, गुरुजी आदेश - आदेश- आदेश

श्रीबटुक-भैरव मन्त्र -

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बदुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु काय ह्रीं ह्रां ह्रीं क्लीं क्लूं सः हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्री घूं उमलवरयूं हौं ह्रौं महाकालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष, मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष, मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-वृष्टि वुष्ट-युद्धि दुष्ट प्रयोगान् कारकान् दुष्ट-प्रयोगान्कु र्वति कारयति करिष्यति तां हन हन, उच्चाटय उच्चाटय स्तम्मय स्तम्भय, मारय मारय, मय-मय, घुनघुन, खेदय-छेदय, छिन्धि छिन्धि, हन हन, फ्रें-फ्रें-, बॅ--, ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्र हृह, बुं बुंकुं दुष्टं वारय-चारय, दारिद्रं हन हन, पापं मय मब, आरोग्यं कुरु कुरु, पर-बलानि लोभय-क्षोभय, क्ष क्ष क्षह्रीं बटुकाय, केलि-दद्राय नम॥ 

त्रिपुर सुन्दरी वैदिक एवं शाबर मन्त्र साधना

ध्यान मंत्र
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बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों। 
नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।। 
हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती। 
श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

आवाहन मंत्र
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ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

मुलमंत्रं
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ऊं ह्रीं कं ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।

त्रिपुर सुन्दरी शाबर मन्त्र
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ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता | 
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो: 

ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं 

नाथ योग विद्या

ॐ गुरुजी ॐ कंठ बसे सरस्वती ह्रदय देव महेश भुला अक्षर ज्ञान का जोत कला प्रकाश, सिद्ध गौरी नन्द गणेश बुध को विनायक सिमरिये बल को सिमरिये हनुमंत, ऋद्ध-सिद्ध को श्री ईश्वर महादेव जी सिमरिये, श्री गंगा गौरी पार्वती माई जी तुम्हारे कन्त उमा देवी गौरजा पार्वती भस्मन्ती देवी हिरख मन अगर कुंकुम केशर कस्तुरी मिला कूपिया तिस्ते भया, एक टीका अमर सेंचो जी जीव संचिया शक्त्त स्वरूपी हाथ धरिया नाम धारियो श्री गणपतनाथ पूता जी तुम बैठो स्थान में जावा नहावण आवण-जावण किसी को न दीजिये अंकुश मारपर संग लीजिये । बण खण्ड मध्ये से आए श्री ईश्वर महादेव छूटी ललकार ईश्वर देख बालक क्रोप भरिया ज्यो घृत बसन्तर धरिया शिवजी आणि मन सा रीस फिरयो चक्र ले गयो शीश तीन भवन से भई हलूल श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी आ कहने लगी स्वामी जी पुत्र मारिया तिसका कौन विचार देवी जी मै नहीं जानो तुमरा पूत मै जानो कोई दैत्य न दूत गज हस्ती का शीश लियाऊं, काट आन अलख निरंजन के पास बिठाऊं, शंकर जी ल्याये हस्ती का शीश श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी करी असीस जब गनपट उठन्ते खेल करन्ते, महिमा उवरन्ते गणपत बैठे स्थान मकान उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम ल्याये श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी के आगे स्वामी जी तुम तो सिमरे सोची मोची तेली तंबोली ठठीहरा गनिहारा लुहारा क्षेत्र सिमरे क्षेत्रपाल अजुनी शंभू सिमरे  महाकाल लाम्बी सूँड बालक भेष प्रथमे सिमरो आद गणेश पाँच कोस ऋद्ध उत्तर से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध दक्षिण से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पूर्व से ल्याऊं, पाँच कोस ऋद्ध पश्चिम से ल्याऊं, दस कोस ऋद्ध अज गायब से ल्याऊं, इतनी ऋद्ध-सिद्ध दिये बिना न जाऊँ श्री गंगा गौरजा पार्वती माई जी तुम्हारी माया प्रथमे एक दन्त, द्वितीय मेघवर्ण, तृतीय गज करण, चतुर्थ लंबोधर, पंचमे विघ्नहरण, षष्टमे धूम्ररूप, सप्तमे विनायक, अष्टमे भालचंद्र, नवमे शील संतोष, दशमे हस्तमुख, एकादशे द्वारपाल, द्वादशे वरदायक एते गणपत गणेश नाम द्वादश सम्पूर्ण भया । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश ।