गोरख वाणी :" पवन ही जोग, पवन ही भोग,पवन इ हरै, छतीसौ रोग, या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव! " ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला,मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !"कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई !कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी !बदन्त गोरखनाथ सुणौ, ...नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई ! "
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