Monday 23 June 2014

सतगुरू यन्त्र (अनहद चक्र)

सहृदय नाता होता है, गुरू-शिष्य का भक्ति प्रेम श्रद्धा आद्रता होता है हृदय में। हृदय-प्राण-ज्योत से योग में चेतनता आती है। यह है हृदय का मन्त्र अर्थात अनहद चक्र अर्थात् सतगुरू यन्त्र। येगेश्वर योगावृढ ‍होता है। प्राण-अपान प्राणायाम से चित्त मे एकाग्रता लाता है और अपनी एकाग्रता हृदय स्थान मध्ये केंद्रित करता है जिसे अनाहद चक्र कहते हैं। इस चक्र का मुख नीचे है। बारह दल का कमल पुष्प पर विष्णु जी का चक्र विराजमान है। बीज शब्द कँ खँ गँ घँ ङँ चँ छँ जँ झँ टँ ठँ इन दलों पर होता है । तत्व वायु अर्थात प्राण अपाण है। तत्व का बीज यँ शब्द है। यन्त्र मध्ये मे सतगुरू यन्त्र जो मृगावाहन पर आरूढ़ है। खड़े त्रिकोण के ऊपर सतगुरू जी तथा देवता रूद्रनाथ जी (श्री) तथा शक्ति उमा देवी विराजमान है। अर्थात सतगुरू शब्द (मन्त्र) से रूद्र-उमा शक्ति ‍का मिलाकर योगी मह: लोक जाकर महानन्द कैवल्यानन्द प्राप्त करता है। धयान योग मे योगी षटकोण यन्त्र को खडदर्शन स्वरूप मे पार करना पडता है। अर्थात सतगुरू प्राप्ति दीक्षा शबद, (गुरू मन्त्र)-प्राप्ति के पश्चात कृपा आशीर्वाद से पूर्ण योग (दृढ़ता) में आता है। तब सतगुरू सपर्श गुण से शक्तिपात जहां पश्विम द्वार से निकली हुई ब्रह्मनाडी पर ब्रह्मा आरूढ़ है। जिससे ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है तथा उत्तर द्वार मे वज्रा और दक्षिण द्वार से निकली हुई चित्रिणी जाग्रत से योगी, ईशत्व सिद्धि को प्राप्त होता है तथा पीला-नीला-वृन्दा-शारदा जाग्रति से काव्य शक्ति बाला को प्राप्त करता है।
इस प्रकार योगेश्वर अपने योग में हृदय के ऊपर ध्यान केन्द्रित कराके पूर्ण समाधि में आनन्द उपभोगते हैं।

 
 
।। सतगुरू यन्त्र का मन्त्र ।।
सत नमो आदेश। गुरू जी को आदेश। ॐगुरू जी। ॐआदि अनादि अखण्ड ज्योति। जोत जागे बिन बाती। सतगुरू शिव शक्ति मिल थापना थापी। ब्रह्माजी बैठे ब्रह्मनाडी, रूद्रनाथ जी संग उमा बैठी विषण चक्र, कमल के छत्र। मृगासन दिय बिछाय सतगुरू बैठे हृदय निवास । ॐ रूद्र नाथ जी का शंख बजे। अनहद नाद का डंका बाजे। ईश्वर गुरू देव ने मन्त्र फूंका। जपो मन्त्र काटो पाप सतगुरू सम्भालो अपना आप। गुरू शबद दीक्षा दीन्ही। इडा पिंगला जोगन भेटी। सुषम्ना मिल्या शिव घर शक्ति बैठी। ज्ञान गुरू मिलीया ज्ञान सिद्ध। पूरब पश्चिम दक्षिण उत्तर महालोक मे ईश सिद्ध। सतगुरू मन्त्र शक्ति बाला। रक्षा करे गुरू गोरखनाथ बाला। इतना मन्त्र जपे तपे सुमिरन करे। सो पर काया प्रवेश सिद्धि को पावे। जो ना करे सो भव सागर डूबे। इतना सतगुरू मन्त्र सम्पूर्ण भया। श्री नाक़ जी गुरू जी को आदेश।

 
 
॥ आदेश आदेश ॥

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