धूनी-पानी-सिद्धों की बानी
श्री नाथ सिद्धों का धूना आदि अनादि काल से चलती आई परम्परा है। विशेषत: नाथ सिद्ध योगेश्वर धूना को सर्वथा प्रधान मानते है। त्यागी, तपस्वी सिद्ध महासिद्ध इत्यादि योगेश्वर स्थान मकान में तथा रमत में और जंगलों में धूना को चेतन कराके अपनी साधना को युग-युग से सिद्ध करते आये हैं। धूना तथा धूना की भभूत संकट, भूत, प्रेत तथा काम क्रोध, मद मत्सर, मोह इन सभी को भस्म करती है। ऐसा महात्माओं का विश्वास है। काया भस्मी स्नान से शरीर का सुरक्षा कवच बनता है।
नाथ योगी ध्यान योगी, ज्ञान योगी, पीर-महन्त नागे पीर, सन्यासी बैरागी जती-सती स्थानी मकानी त्यागी, तपस्वी सिद्ध महासिद्ध इत्यादि योगेश्व,र स्थान मकान में तथा रमत में और जंगलों में धूना को चेतन कराके अपनी साधना को युग-युग से सिद्ध करते आये हैं। अग्नि जंगलों मे सुरक्षा हेतु भी उपयोग होता है।जंगली प्राणी अग्नि से दूर रहतें है। वातावरण के जीव जन्तु दूर रहते है। अर्थात साधु-सन्तों के लिए यह रक्षपाल तथा शस्त्र देवता ही प्रमाणित होती है।
सन्त महात्मा धमनी की भभूति काया मे रमाते है जिसे भस्मी स्नान कहते है और भस्मी युक्त रहतें है। पूर्व आख्यायिका है कि भगवान शंकर जी ने माया स्वरूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ जी के ऊपर भस्मी डालकर भस्मी स्नान कराया था। ‘’उलटन्त बिभूत पलटन्त काया’’ यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। ‘’चढ़ी बभूत घट हुआ निर्मल’’ अर्थात् भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है। इसलिये धूना भस्मी अतिषय पवित्र मानी जाती है। धमना तथा धूना की भभूत संकट, भूत, प्रेत तथा काम क्रोध, मद मत्सर, मोह इन सभी को भस्म करती है। ऐसा महात्माओं का विश्वालस है। काया भस्मी स्नान से शरीर का सुरक्षा कवच अनता है। वैज्ञानिक दृष्टि से जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े तथाथ गर्मी के मोसम मे इनका कोई भी प्रभाव नहीस होता। इस प्रकार धूनी-भभूति वरदायिनी है।
महात्माओं मे शैव पंथी धूना या धूनी कहते है। नाथ सिद्धों मे यह धूना नाम से प्रचलित है। वैष्णवी पंथ के महात्मा इसे यज्ञ या (होम) प्रकार से स्वीकारते है और यज्ञों मे पूजन स्थापन-हवन इत्यादि कर्मकाण्ड करते है। यज्ञ हवन-पूजन बहुत ही पुण्यप्रद तथा मोक्ष दायक और मुक्ति दायक होता है। यह यज्ञ नाथ सिद्धों मे धूना (धूनी) शैवपंथ मे रूद्रयज्ञ महारूद्र यज्ञ, शक्ति चण्डी यज्ञ, महाचण्डी, सतचण्डी, सहस्त्रचण्डी तथा राजा महराजाओं का अश्वमेघ यज्ञ (पुत्र) सन्तती प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टी यज्ञ सत्कर्मी यज्ञ किये जातें है। यह सात्विक यज्ञ होते है। इस प्रकार अघोर कर्म मे अघोर यज्ञ भी किये जाते है।
यज्ञ अलग-अलग प्रकार से किये जाते हैं। वैदिक मन्त्र-तन्त्र विधि से तथा नाथ सिद्धों मे शाबर मन्त्र विधि से यज्ञ (धूनी) का पूजा पाठ तथा हवन किया जाता है।
।। श्री नाथ सिद्धों का प्रात: धूनी का कर्म ।।
यहां हमने शाबर मन्त्र विधि से धूना का नित्यकर्म पर प्रकाश डाल कर यज्ञ विधिवत करने का प्रयास किया है।
सिद्ध योगेश्वर तथा पुजारी प्रात:३ बजे उठकर प्रात: नित्य विधि के उपरान्त सब धूना पर आते है। पुजारी जी सब साफ सफाई करके प्रथम देवता के यहां दीपक लगाते है। धूनी के महन्त जी तथा पीर जी के आसन तैयार करते है और योगेश्वर भी अपने-अपने आसन बना लेते हैं। पुजारी जी अपने देवता के पूजन मे जुड़ जाते है। देवता की पूजा के पश्चात दबी हुई धूनी का पूजन यापन करने के पश्चात धूनी चेतन करते है और पूजा आरती के कार्य मे जुड़ जाते है। अन्य महात्मा योगेश्वर भण्डारी, कोठारी, पीर जी, महन्त जी, पंख, कोटवाल, क्षेत्रपाल अपना प्रात: विधि करके आते हैं। धूनी पर तथा देवता को आदेश करके भस्मी स्नान मे जुड़ जाते हैं। धूनी के महन्त पीर जी के लिए पूजारी जी ने डाले हुये आसनों पर बैठने की, आसन ग्रहण करने की निम्न मन्त्रों द्वारा विनती करते हैं। पीर जी भस्मी स्नान करके आसन ग्रहण करते है। जब सभी योगेश्वर भस्मी स्नान उपरोक्त देवता को तथा महन्त पीर जी को नादि आदेश करते हैं।
॥ आदेश आदेश ॥
श्री नाथ सिद्धों का धूना आदि अनादि काल से चलती आई परम्परा है। विशेषत: नाथ सिद्ध योगेश्वर धूना को सर्वथा प्रधान मानते है। त्यागी, तपस्वी सिद्ध महासिद्ध इत्यादि योगेश्वर स्थान मकान में तथा रमत में और जंगलों में धूना को चेतन कराके अपनी साधना को युग-युग से सिद्ध करते आये हैं। धूना तथा धूना की भभूत संकट, भूत, प्रेत तथा काम क्रोध, मद मत्सर, मोह इन सभी को भस्म करती है। ऐसा महात्माओं का विश्वास है। काया भस्मी स्नान से शरीर का सुरक्षा कवच बनता है।
नाथ योगी ध्यान योगी, ज्ञान योगी, पीर-महन्त नागे पीर, सन्यासी बैरागी जती-सती स्थानी मकानी त्यागी, तपस्वी सिद्ध महासिद्ध इत्यादि योगेश्व,र स्थान मकान में तथा रमत में और जंगलों में धूना को चेतन कराके अपनी साधना को युग-युग से सिद्ध करते आये हैं। अग्नि जंगलों मे सुरक्षा हेतु भी उपयोग होता है।जंगली प्राणी अग्नि से दूर रहतें है। वातावरण के जीव जन्तु दूर रहते है। अर्थात साधु-सन्तों के लिए यह रक्षपाल तथा शस्त्र देवता ही प्रमाणित होती है।
सन्त महात्मा धमनी की भभूति काया मे रमाते है जिसे भस्मी स्नान कहते है और भस्मी युक्त रहतें है। पूर्व आख्यायिका है कि भगवान शंकर जी ने माया स्वरूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ जी के ऊपर भस्मी डालकर भस्मी स्नान कराया था। ‘’उलटन्त बिभूत पलटन्त काया’’ यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। ‘’चढ़ी बभूत घट हुआ निर्मल’’ अर्थात् भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है। इसलिये धूना भस्मी अतिषय पवित्र मानी जाती है। धमना तथा धूना की भभूत संकट, भूत, प्रेत तथा काम क्रोध, मद मत्सर, मोह इन सभी को भस्म करती है। ऐसा महात्माओं का विश्वालस है। काया भस्मी स्नान से शरीर का सुरक्षा कवच अनता है। वैज्ञानिक दृष्टि से जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े तथाथ गर्मी के मोसम मे इनका कोई भी प्रभाव नहीस होता। इस प्रकार धूनी-भभूति वरदायिनी है।
महात्माओं मे शैव पंथी धूना या धूनी कहते है। नाथ सिद्धों मे यह धूना नाम से प्रचलित है। वैष्णवी पंथ के महात्मा इसे यज्ञ या (होम) प्रकार से स्वीकारते है और यज्ञों मे पूजन स्थापन-हवन इत्यादि कर्मकाण्ड करते है। यज्ञ हवन-पूजन बहुत ही पुण्यप्रद तथा मोक्ष दायक और मुक्ति दायक होता है। यह यज्ञ नाथ सिद्धों मे धूना (धूनी) शैवपंथ मे रूद्रयज्ञ महारूद्र यज्ञ, शक्ति चण्डी यज्ञ, महाचण्डी, सतचण्डी, सहस्त्रचण्डी तथा राजा महराजाओं का अश्वमेघ यज्ञ (पुत्र) सन्तती प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टी यज्ञ सत्कर्मी यज्ञ किये जातें है। यह सात्विक यज्ञ होते है। इस प्रकार अघोर कर्म मे अघोर यज्ञ भी किये जाते है।
यज्ञ अलग-अलग प्रकार से किये जाते हैं। वैदिक मन्त्र-तन्त्र विधि से तथा नाथ सिद्धों मे शाबर मन्त्र विधि से यज्ञ (धूनी) का पूजा पाठ तथा हवन किया जाता है।
।। श्री नाथ सिद्धों का प्रात: धूनी का कर्म ।।
यहां हमने शाबर मन्त्र विधि से धूना का नित्यकर्म पर प्रकाश डाल कर यज्ञ विधिवत करने का प्रयास किया है।
सिद्ध योगेश्वर तथा पुजारी प्रात:३ बजे उठकर प्रात: नित्य विधि के उपरान्त सब धूना पर आते है। पुजारी जी सब साफ सफाई करके प्रथम देवता के यहां दीपक लगाते है। धूनी के महन्त जी तथा पीर जी के आसन तैयार करते है और योगेश्वर भी अपने-अपने आसन बना लेते हैं। पुजारी जी अपने देवता के पूजन मे जुड़ जाते है। देवता की पूजा के पश्चात दबी हुई धूनी का पूजन यापन करने के पश्चात धूनी चेतन करते है और पूजा आरती के कार्य मे जुड़ जाते है। अन्य महात्मा योगेश्वर भण्डारी, कोठारी, पीर जी, महन्त जी, पंख, कोटवाल, क्षेत्रपाल अपना प्रात: विधि करके आते हैं। धूनी पर तथा देवता को आदेश करके भस्मी स्नान मे जुड़ जाते हैं। धूनी के महन्त पीर जी के लिए पूजारी जी ने डाले हुये आसनों पर बैठने की, आसन ग्रहण करने की निम्न मन्त्रों द्वारा विनती करते हैं। पीर जी भस्मी स्नान करके आसन ग्रहण करते है। जब सभी योगेश्वर भस्मी स्नान उपरोक्त देवता को तथा महन्त पीर जी को नादि आदेश करते हैं।
॥ आदेश आदेश ॥
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