Tuesday 8 April 2014

निर्वाण समाध॥



ॐ गुरु जी सतगुरु खोजो मन कर चंगा इस विधि रहना उत्तम संगा।
सहजे संगम आवे हाथ श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी कंचन काया ज्ञान रतन सतगुरु खोजो लाख यतन।
हस्ती मनु राखो डाट श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ  गुरु जी बोलन चालन बहु जंजाला गुरु वचनी-वचनी योग रसाला।
नियम धर्म दो राखो पास श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी निरे निरंतर सिद्धों का वासा इच्छा भोजन परम निवासा।
काम क्रोध अहंकार निवार श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी पहिले छोड़ो वाद विवाद पीछे  छोड़ो जिभ्या का स्वाद।
त्यागो हर्ष और विषाद श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी आलस निद्रा छींक जंभा तृष्णा डायन बन जग को खा।
आकुल व्याकुल बहु जंजाल श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी आलस तोड़ो निद्रा छोड़ो गुरु चरण में इच्छा जोड़ो।
जिह्वा इंद्री राखो डाट श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी योग दामोदर भगवा करो ज्योतिनाथ का दर्शन करो।
जत सत दो राखो पास श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी अगम अगोचर कंठीबंध द्वादस वायु खेले चौसठ फंद।
अगम पुजारी खांडे की धार श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी डेरे डूंगरे चढ़ नहीं मारना राजे द्वारे पर पग नहीं धरना
छोड़ो राजा रंग की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ  गुरु जी जड़ी बूटी की बहु विस्तारा परम जोत का अंत न पारा।
जड़ी बूटी से कारज सरे वैद्य धवंतरी काहे को मरे॥

जड़ी बूटी सोचो मत को पहले रांड वैद्य की हो।
जड़ी बूटी वैद्यों की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी वेद शास्त्र को बहु विस्तारा परम जोत का अंत न पारा।
पढ़े-लिखे से अमर होय ब्रह्मा परले काहे को होय।
वेद शास्त्र ब्राह्मणों की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी कनक कामनी दोनों त्यागो अन्न भिक्षा पांच घर मांगो।
छोड़ो माया मोह की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी सोने चांदी का बहु विस्तारा परम जोत का अंत न पारा।
सोना चांदी से कारज सरे भूपति चक्रवर्ती राजे राज काहे को तजे।
सोना चांदी जगत की आस श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी ज्योति रूप एक ओंकारा सतगुरु खोजो होवे निस्तारा।
गुरु वचनों के रहना पास श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी गगनमंडल में गुरु जी का वासा जहां पर हंसा करे निवासा।
पांच तत्त्व ले रमना साथ श्री गुरु उवाच निर्वाण समाध॥

ॐ गुरु जी उड़ान योगी मृड़ान काया मरे न योगी धरे न औतार।
सत्य सत्य भाषंते श्री शंभु जती गुरु गोरक्ष नाथ निर्वाण समाध॥

नाथ जी गुरु जी आदेश आदेश आदेश

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